"प्राण वायु संजीवनी"(कविता)

 बस करो अब बस करो

अपने अहंकार को विराम दो

तुम से ना सम्हल रहा हो तो 

खूंटी पे टांग दो अपने अहंकार को


विपरीत वक़्त है 

हर तरफ जुदा सा मंजर है

हवाओ में जहर है

तुम रावण नही हनुमान बनो


लाओ कही से प्राणवायु संजीवनी

किसी के लिए तो राम बनो

इंसानियत है खतरे में

किसी  लक्ष्मण का तुम उद्धार करो


भारी संकट आया मानव सभ्यता पर

तुम इस युग के राम बनो

इतिहास जब भी लिखा जाएगा

तेरा नाम भी योद्धाओं में लिखा जाएगा


ये महामारी का दौर भी गुजर जाएगा

हर चेहरा जब फूल की तरह मुस्कुराएगा

तेरा छोटा सा योगदान

युगो युगो तक याद रखा जाएगा

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