"पिता बच्चों के सामने मुस्कुराता है"(कविता)
जिम्मेदारियों की भट्टी में
सुलगते हुए भी ,
पिता सदा बच्चों के सामने मुस्कुराता है
हर मोड़ पर दिल पर
पत्थर रख, अपनी ख्वाहिशों को
दफन करके भी
बच्चों के सामने मुस्कुराता है।
खुद चाहे अनपढ़ हो
बच्चों की तालीम के वास्ते
तपती धूप में भी मुस्कुराता है।
चाहे जितना भी टूट जाए मगर
परिवार के लिए बरगद सा निडर
सदा ठंडी छांव देता हुआ
भी मुस्कुराता है।
रातों की नींद को तिलांजलि देकर
अपने आंसुओं को पोछ लेता है।
पिता अपने बच्चों के खातिर
हर सुबह हिमालय सा
खड़ा होकर बच्चों के सपनों को
नए पंख देता है।
स्वयं फटे हाल कपड़े और जूतों में
सुलगती सड़कों पर चलता है।
सांझ ढले बच्चों के लिए
नए कपड़े और जूतों की
सौगात देता है।
कभी नीम से कड़वा बन
गलत राह पर जाने से रोकता है।
पिता अपनी सारी उम्र
बच्चों के नाम कर देता है ।
Written by कमल राठौर साहिल
Happy father's day....
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