"प्रकृति से खेलने का परिणाम"(कविता)
तुम सरेआम प्रकृति के साथ
खिलवाड़ करते हो
पंचतत्व मिले , तुम्हें मुफ्त में
कहां तुम उनकी कद्र करते हो
बड़े बड़े उद्योग लगाकर
वायु प्रदूषण , जल को
प्रदूषित करते हो।
धरती का सीना छलनी कर
इस धरा को लहूलुहान करते हो
तुम खरपतवार की तरह
हरे भरे पेड़ों को काटते जाते हो
हरियाली से भरी इस धरा को
स्वार्थ में अंधे बन,
बंजर करते हो
तुमने बहुत बो लिए कांटे
अब वो काँटे जवान होकर
तुम्हें ही चुभ रहे हैं
अब तुम विचलित हो
सांस लेने के लिए तुम तरस रहे हो
अपने द्वारा बोई गई फसल से
तुम अब लहूलुहान हो रहे हो।
प्रकृति अपना संतुलन बना रही है
तुम अपने कर्मों की चक्की में
पिस रहे हो
एक बार फिर प्रकृति तुम्हें
आगाह कर रही है
जैसा तुम प्रकृति के साथ
व्यवहार करोगे
प्रकृति उसी रूप में
तुम्हें फल देगी।
Written by कमल राठौर साहिल
Superb......
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