"तितलि"(कविता)

 लाल  गुलाबी, हरे   पीले, रंगों। 

   सजाएँ, हवाओं से  बातें करती, 

हर  कली, पर  मंडराती,  कोई,

   छुए तूझे इससे पहले दूर भाग।

जाती तेरे  रँग  हजार, आसानी,

   से तूझे कोई  कोई नही  पकड़,

सकता यूं  बीच  सड़क बाजार,

   कभी बादलों, से तो  कभी इस,

धरती, के  फूलों  से रँग  चुराती, 

    और अपने  पंख  को  सजाती,

पेड पौधे, फूलो  पर गुनगुनाती,

   प्रकूति, के रँग  में तू  घुलजाति,

पंखों से तू  मधुर  गीत  सुनाती।

   जंगल है तेरा  आलीशान महेल,

बाग  बागीचों,   की   शहजादी,

   कहलाती अपने  पँख, फैला तू,

हवाओं में बडे करतब दिखाती,

   बाग बगीचे सुनाते तेरी कहानी

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