"दगा दिया"(कविता)

 ज़िंदगी    ने   मूझे   भूला  दिया।

निःशब्द,   यादों  ने  रुला  दिया।


धूप, में  निकल  पड़ा था मंज़िल,

ढूंढ ने परछाई, ने हमें दगा दिया।


कुछ  पल  संभाल,  कर  रखें थे,

आँखों  में  अश्कों, ने  दगा दिया।


ख़्वाब  क्या  देखा  तूझे  पाने का 

रातों  को  निंद ने  भी दगा  दिया।


जिन्हें   अपना   रब  समझ   बैठे,

थे   उस  बेवफा,  ने   दगा  दिया।


ख़ुद को  तबाह  करनें  का  इरादा

किया अंत में मौतने भी दगा दिया।

Comments

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)