"दहेज़"(कविता)
भूल आई वो अपने घर आँगन
और परिवार छोड़ आई अपने
माँ बाप को बसाने नया संसार
मोहल्ले वाले पूछने लगे दहेज़
में अपने साथ क्या क्या लाई
पहले ही दिन ससुराल में कदम
रखतें हुई उनके साथ। खिंचाई
कोने में बैठी सोचती क्या मेरी
ज़िंदगी की यही है सच्चाई
दहेज का उन्हें अंदाज़ा भी न था
वो बिचारी हथेलियों में अपने
माँ बाप के संस्कार ले आई
बेटी है लक्ष्मी का अवतार दहेज़
की बात क रके उसपर क्यो
कर रहे हो अत्याचार ठीक से
भूली भी नही होंगी अपनी माँ
का आँचल पीता का प्यार वो
क्या जानें देहप्रथा का व्यापार
Written by नीक राजपूत
nice....
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