"कल तक"(कविता)
कल तक मिलता उससे रातों में,
उठता सुबह मुस्कराते,
सपनो में, अब वो बात कहाँ।
कल तक घंटो निहारता,
रास्तो में पलके बिछाता,
उसकी यहाँ आने का, अब वो आस कहाँ।
कल तक दिल में उतारता,
सीने से लगाता,
उस पर मर मिटू, अब वो ज्जबात कहाँ।
जिंदगी की कशिश में,
बड़ी दूर निकल आया हूँ,
वापस लौट जाऊ, अब वो औकात कहाँ।
Written by #atsyogi
सच में भाई, हम बड़ी दूर निकल आये है......
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