"संघर्ष कर" (कविता)
बढ़ा कदम इतिहास रच,
गर हो जज्बात, तो संघर्ष कर।
नदियाँ क्या,
चढ़ा पाल, सागर को भी पार कर,
गर हो हिम्मत, तो लहरों से संघर्ष कर।
टीले या पर्वत क्या,
हिमालय भी शीश झुका देगा,
निर्णय तो कर, बढ़ा कदम संघर्ष कर।
बारिशों में क्या,
तूफानों में भी अपनी चमक बिखेर,
गड़गड़ाहट के साथ धरती को रोशन कर,
दिया नहीं, बिजली सा संघर्ष कर।
लकड़ी की आग क्या,
तू ज्वालामुखी है, उसके शोलो सा धधक,
गर है आग, तो सूर्य के तेज से संघर्ष कर।
बढ़ा कदम इतिहास रच,
गर हो जज्बात, तो संघर्ष कर।
Written by #atsyogi
Rag rag me Jos bhar diya es kavita ne....
ReplyDelete