"जवानी - जवानी नही"(कविता)

ठहर जाए !

कि सड़ जाए !

वो गंगा की पानी नही।


सहम जाए !

कि ना डरे !

वो शेर की दहाड़ नही।


छड़ में, निकल जाए !

कि बह जाए !

वो मर्द की आंसू नहीं।


रुक जाए !

कि भयभीत हो !

वो संघर्ष की कहानी नही।


ठोकर लगे !

कि दूर जा गिरे !

वो पर्वत - पहाड़ नही ।


मिट्टी का पुतला !

कि मिट्टी में ना मिले !

ऐसी कोई होनी नही ।


डर जाए !

कि झुक जाए !

ऐसी, वो जवानी - जवानी नही ।

Written by #atsyogi

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