"उठा झोला बाजार चले"(कविता)
आ चल थोड़ी हसी-मजाक बने,
अपमान-सम्मान को जेब मे रख,
चेहरे पर मुस्कान लिऐ,
उठा झोला बाजार चले।
थोड़ी सी आलू, थोड़ी सी टमाटर,
एक झोले में रखने का अभ्यास करे,
उठा झोला बाजार चले।
नमक भी रख, मिर्च भी रख,
स्वादानुसार इस्तेमाल कर,
पीठ पीछे मजाक बहुत होंगे,
फिर भी हम मुस्कुराते हुवे चले,
उठा झोला बाजार चले।
प्लास्टिक भी मिलेगा, कागज भी मिलेगा,
ना ना ना बेवजह हाथ न लगा,
झोला शान से आगे बढ़ा,
आ चल गर्व से शीश उठा चले,
उठा झोला बाजार चले।
Written by #atsyogi
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