"वाचाल ग़ज़ल"


दिल में हमारे आज भी अरमान पल रहा है

सच मानिये कि दिल को ये दिल ही छल रहा है


रंगे-निशात झेला बारे-अलम उठाकर

ना जाने किस बिना पर ये साँस चल रहा है

जुड़ता है टूट टूट कर लेकिन संभल रहा है


वो पूछते हैं अक्सर क्या हाल है तुम्हारा

कैसे उन्हें बताएँ कि वक़्त टल रहा है

बुझती हुई शमा पे परवाना जल रहा है


मस्ती में दे रहा था जो चाँदनी अभी तक

वो देखिये उफ़ुक पर अब चाँद ढल रहा है

हारा थका मुसाफिर ज्यों हाथ मल रहा है


पाला है हमने दिल को पहलू में कैसे कैसे

उनसे मिली नज़र क्या उनको मचल रहा है

जैसे कि बस उन्हीं का इसपे दखल रहा है


अहसान मुफलिसी का ये दिन दिखाए यारो

हर शख़्स दूर ही से रस्ता बदल रहा है

जतला रहा है ऐसा जैसे टहल रहा है


घर तो जलाया उनका बेख़ौफ़ दरिंदों ने

फ़िर क्यों धुआँ हमारे घर से निकल रहा है

काहे हमारे जिस्म में सीसा पिघल रहा है

Comments

  1. मस्ती में दे रहा था जो चाँदनी अभी तक

    वो देखिये उफ़ुक पर अब चाँद ढल रहा है

    हारा थका मुसाफिर ज्यों हाथ मल रहा है
    nice line sir...

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