"यारो, मनमाफिक लेता हूँ"(ग़ज़ल)
कभी-कभी कुछ लिख लेता हूँ
दिल के हाथों बिक लेता हूँ
करना हो जब उल्लू सीधा
कड़ी धूप में सिक लेता हूँ
मुँह में अली बगल में चाकू
रख ईमां पर टिक लेता हूँ
कभी तिलक तो कभी जनेऊ
धर्म में रुचि अधिक लेता हूँ
जब-जब प्यारी सूरत देखूँ
नाम बदल आशिक़ लेता हूँ
हया शर्म को बेचबाच कर
धन दौलत से छिक लेता हूँ
अपने हित के सभी फैसले
यारो,मनमाफिक लेता हूँ
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
सादर आभार आपका, सम्पादक महोदय।
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