"बेढ़ंगी"(ग़ज़ल)

क्या बतलाऊँ हाल दोस्तो

जीना हुआ मुहाल दोस्तो


रोज़ी रोटी के चक्कर में

दिनचर्या भूचाल दोस्तो

अहर्निशी अब माप रहा हूँ

धरती नभ पाताल दोस्तो


ठाठ देखकर जनसेवक के

मन में उठे सवाल दोस्तो

कल तक जो था भूखा नंगा

किस विधि मालामाल दोस्तो


औरों की टोपी उछाल कर

करता बहुत धमाल दोस्तो

अपने सिर शहतीर न देखे

मेरी अँखियन बाल दोस्तो


पड़ोसियों के घर में क्या है

वो करता पड़ताल दोस्तो

अपने घर की ढाँप रहा है

हर बेढ़ंगी चाल दोस्तो


धरने पर बैठे सहकर्मी

पीट रहे करताल दोस्तो

डब्बा पहुँचा प्रधान के घर

ख़त्म हुई हड़ताल दोस्तो


छोटा सा घोटाला कर के

घर बैठी दो साल दोस्तो

अधिकारी घर रुका रात तो

सुबह हुई बहाल दोस्तो

Comments

  1. ठाठ देखकर जनसेवक के

    मन में उठे सवाल दोस्तो
    nice line sir

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