"सराब (मृगमरीचिका) रखता हूँ" (ग़ज़ल)
कई चेहरे जनाब रखता हूँ
हर एक पे नक़ाब रखता हूँ
सवालों के जवाब तो हैं पर
गुल्लकों में जवाब रखता हूँ
किसिम किसिम की हैं रातें मेरी
बीसियों माहताब रखता हूँ
बूढ़े माता-पिता के हिस्से की
हर दवा का हिसाब रखता हूँ
बीवी-बच्चों के नाम से बेशक़
बैंकों की किताब रखता हूँ
घर में आ जाए जब कभी साली
उसके खातिर गुलाब रखता हूँ
भाई भाभी कभी आ जाएँ इधर
पेशे-ख़िदमत सराब रखता हूँ
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
Jai ho... Superb sir... Bahut hi shandar
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