"इन्द्रधनुष पर"(ग़ज़ल)

 


किसी बहाने जब देखो,छज्जे पे आना जाना छोड़ो

आता देख मुझे, खिड़की में आकर बाल बनाना छोड़ो


क्या नाता है तुमसे मेरा, क्यों अपनापन जता रहे हो

हँस हँस कर यूँ बार बार,नैनों से तीर चलाना छोड़ो


मैं नसीब का मारा, मुझको पाकर होगा क्या हासिल

अपने दिल के बालू पे,बरसाती फसल उगाना छोड़ो


आहें भरना-होंठ काटना-आँखें मलना, सब बेकार

घुट घुट कर यूँ अपना दिल, और मेरा जिगर जलाना छोड़ो


ख़्वाब-तसव्वुर-तड़प-सिसकियों, की उलझन से बाहर आओ

इन्द्रधनुष पर लिखना अपना-मेरा नाम,मिटाना छोड़ो


Comments

  1. क्या नाता है तुमसे मेरा, क्यों अपनापन जता रहे हो

    हँस हँस कर यूँ बार बार,नैनों से तीर चलाना छोड़ो
    Superb 👍

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)