"हज़ारों को करोड़ कर साहब"(ग़जल)
फटी चादर को ओढ़ कर साहब
ग़म की बाहें मरोड़ कर साहब
आइये नेक काम ये कर लें
दिल के टुकड़ों को जोड़ कर साहब
मैंने मौजों से लिया है पंगा
अपनी कश्ती को छोड़ कर साहब
आशियाने बचाए हैं अक्सर
रुख़ हवाओं का मोड़ कर साहब
वजूद उसका क्या मिटाओगे
शाख़े-बरगद को तोड़ कर साहब
लहू इससे टपकता तो नहीं
दिखाओ दामन निचोड़ कर साहब
बड़प्पन क्या दिखा रहे हैं आप
नाक-भौं को सिकोड़ कर साहब
कीजिये इक मिसाल ये क़ायम
घड़ा नफ़रत का फोड़ कर साहब
भला क्या साथ लेके जाओगे
हज़ारों को करोड़ कर साहब
Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'
Heart ❤️ touching sir
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