"मैं"(कविता)
प्रियतमा यदि गुलाब़ है , मैं खुली किताब़ हूँ । कहीं इश्क रूआब़ है , कहीं मैं ख्वाब़ हूँ । नदी को जवाब़ है , मैं मछलियां बेहिसाब़ हूँ । समंदर तक हिसाब़ है , मैं कहाँ लाजवाब़ हूँ ? अम्बर तक आफताब़ है , मैं तो इंकलाब़ हूँ । कहीं गिरे शराब़ हैं , मैं क्यूँ सैलाब हूँ ? कहीं गवयीं तालाब़ है , मैं सितारा जनाब़ हूँ । महफिल में शबाब़ हैं , मैं न कवाब़ हूँ । कहीं पाषाणी खिताब़ है , मैं कहाँ नवाब़ हूँ ? कहीं निःशब्दता नायाब़ है , मैं आखिरी दवाब़ हूँ । मिथ्या पे नकाब़ है , मैं स़च़ बेनकाब़ हूँ । न रातें नाकामयाब़ है , मैं अश्कें कामयाब़ हूँ । हालातें भी खराब़ हैं , मैं मृगतृष्णा बेताब़ हूँ । कहाँ खुशियाँ महताब़ है , मैं गुजारिशें ताब़ हूँ ! कहाँ मंजिलें सवाब़ है , मैं लघु हिसाब़- किताब़ हूँ !! Written by विजय शंकर प्रसाद