"कलेजे की बेबसी"(कहानी)
कलेजे की बेबसी
,,माँ,,,,,,, माँ,,,,,, मै आरहा हूँ माँ ,,,,,, ,मै आरहा हूँ माँ ,,,,,,,,,,,,चीख रहा था साहिल। उसकी चीख की गूंज ने दिल्ली के नुमाइन्दों की कुर्सी तक हिला कर रख दी थी। लोक सभा का कार्य कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया था। प्रधान मंत्री जी खुद इस केस को हैण्डल कर रहे थे। उनकी सख्त हिदायद थी कि '' साहिल की फांसी से पहले इस केस से जुड़ी कोई खबर बाहर मिडिया में नहीं आनी चाहिए। '' इसी बात ने मीडिया में तहलका मचा रखा था कि आखिर ऐसा क्या गुनाह किया है साहिल ने। पेपर ,मैगजीन ,रेडियो ,टी वि सब एक ही जगह रुक गए थे।पूरा देश साँसे रोके इस कार्य कर्म की गति विधियों को देख ,सुन रहा था। पहली बार फांसी का लाइव शो दिखाया जाने बाला था। ऐसा अनोखा केस न कभी देखा, न सुना गया था। स्तब्ध था पूरा देश ,,,,,,
दिल्ली के प्रगति मैदान में पहली बार मौत का नजारा जशने आम था। भारत के इतिहास में पहली बार खुले मैदान में फाँसी की सजा दी जा रही थी। लाखों के संख्या में भीड़ जमा थी। सब की नजरें स्टेज पर लटकते फाँसी के फंदे पर थी और मन हजारों सवालों के बीच घिरा था पर जबाब किसी के पास नहीं था। साहिल को जेल से बाहर लाया जा रहा था।' शाम के चार बजे ' फांसी की सजा का समय निर्धारित किया गया था। साहिल लगातार चीख रहा था ''माँ ,,,,मैं आरहा हूँ ,,,,,माँ ,,,,मैं आरहा हूँ ,,, '' उसकी हृदयविदारक चीख सुन वहॉं उपस्थित भीड़ की आँखें नम थी। हर कोई अपनी बुद्धि लगा कर इस जुमले को समझने की कोशिश कर रहा था। बहुत कुरेदने के बाद मिडिया यहां तक ही जान पाई थी कि उसने ''रामगढ़ के जमींदार के बहन की गला काट कर हत्या कर दी और खून से लथ पथ कटार लेकर पुलिस स्टेशन में खुद को सरेंडर कर दिया था। उसकी पूरी कहानी सुन पुलिस सकते में आगयी थी। पूरा डिपार्टमेंट दहशत में था। जबरदस्त खलबली मच गयी थी पुलिस डिपार्टमेंट में। बढ़ते बढ़ते बात ऊपर तक पहुँची। इस घटना की खबर जब प्रधान मंत्री जी के कानों तक पहुँची , उन्होंने सारा केस जानने के बाद पुलिस को सख्त हिदायत देते हुए कहा । "साहिल को सजा होने तक यदि इस केस का मैटर लिक हुआ तो पुरे के पुरे पुलिस डिपार्टमेंट को सस्पेंड कर दिया जायेगा। " इसी डर ने उन सब की जुबान पर ताला लगा दिया था।
ऐसा पहली बार हुआ था की मिडिया की पैनी नजर भी इस केस का थाह पाने में असमर्थ थी। इसीलिए मिडिया का हर स्रोत बेकरार था सच को कैमरे में कैद करने को। भारी तादाद में पत्रकारों की भीड़ जमा थी। हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। बातावरण में सिर्फ एक ही चीख सुनाई दे रही थी '' माँ ,,,,,,,,,,,मैं आरहा हूँ ,माँ ,,,,,,,,,मैं आरहा हूँ ''। साहिल की दर्द भरी चीख कलेजे को छलनी कर रही थी। कइयों की तो आँखे भर आई थी। फांसी का समय हो गया था। सारे दिग्गज स्टेज पर थे ,पुलिस के ऊँचे आला अधिकारी ,जज साहेब ,डॉक्टर सब निर्धारित समय का इंतजार कर रहे थे । जल्लाद ने साहिल के गले में रस्सी डाल दी गयी पर चेहरा नहीं ढँका । सामने मौत खड़ी थी पर इन सब से बेखबर साहिल आँखें बंद कर लगातार चीखे जा रहा था। माँ,,,,, मैं,,,,आरहा,,,,हूँ,,,,,। एक,,, दो,,,,, तीन ,,,,,,की गिनती के साथ जल्लाद ने रस्सी खींच दी। "माँ ,,,,,,,,,,,,, " चीख सदा के लिए शांत हो गयी। साहिल मर गया। रस्सी से झूल गया था उसका निर्जीव शरीर। सारे मैदान में मरघट का सन्नाटा छाया था ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, तभी धूल का गुब्बार उठा,,,,,,, ,हवाएं तेज होगयी। भीड़ में हलचल होने लगी थी पर जाने का कोई नाम नहीं लेरहा था।सब के सब्र का बांध टूटने लगा था। तभी साहिल की आवाज पुरे मैदान में गूंज उठी,,, उसकी गूंज सुनते ही पुरे वातावरण में गहरा सन्नाटा छा गया ।बड़े स्कीरिन पर साहिल की तस्वीर उभरी उसके हाथ में खून से लथ पथ कटार थी। चेहरा और शरीर खून से लतपथ था फिर शुरू हुआ उसका कन्फेशन जो मरने के पहले रिकॉड किया गया था।
''मै साहिल ,उम्र -२७ साल ,निवास स्थान --रामगढ़,एजुकेशन -बी ए ऑनर्स । मेरे बाबा ४० सालों से रामगढ़ के जमीन्दार के यहाँ काम कर रहे थे। मेरा बचपन उसी हवेली में गुजरा था।बाद में बाबा ने मुझे पढ़ने चाचा के पास दिल्ली भेज दिया था। १० साल का था जब बाबा का देहांत होगया था। मैं माँ के साथ रहना चाहता था पर माँ चाहती थी मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूं। बाबा के जाने के बाद उनके काम की जिम्मेदारी माँ ने संभाल ली थी। मैं कालेज की पढ़ाई पूरी की और घर वापस आगया। काम की तालाश में था। ठाकुर साहब को पता चला तो उन्होंने मुझे बुलाया और कहा " कल से तुम मेरे ऑफिस आजाना।" सुबह मैं ऑफिस पहुंचा ,ठाकुर साहब ने पूरा खेत खलिहान के हिसाब किताब दिखाते हुए कहा '' आज से ये सब तुम्हे संभालना है ''। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था । मैं अपनी माँ को दुनियाँ की सारी खुशियाँ देना चाहता था। माँ ने जीवन मे बहुत कष्ट उठाया था ये उन्हीं की तपस्या थी कि मैं पढ़ लिख पाया। मैंने बचपन से माँ को खटते ही देखा था।माँ मुझे अपने छोटे से सल्तनत का राजकुमार कहती थी । वो दिन रात मेहनत करती ताकि मुझे किसी चीज की कमी न हो। गरीबी को अपने फटे आँचल में समेटे वह , मुझ पर अमीरी का रंग उड़ेलती रही पर मेरी आँखे उनके चेहरे पर बढ़ते सिलबटो को देख रही थी। उनकी दुनियाँ मुझसे थी और मेरी जिंदगी उनसे थी । मैंने मन ही मन शपथ खाई थी कि मैं बहुत पैसे कमाऊंगा और दुनियां की सारी खुशियों से माँ का आँचल भर दूंगा। मैं अपनी प्यारी माँ को फूलों के सेज पर रखूँगा । उनके शरीर से दुःख , दर्द की सारी सिलबटें उतार फेकूँगा। अब वो समय आगया था। अब माँ का काम करना अब मुझे पसंद नहीं था। माँ ने मेरी बात मान कर काम पर जाना बंद कर दिया था। मैंने भी अपना सारा काम बहुत मुस्तैदी से संभाल लिया था। ठाकुर साहब मेरे काम से बहुत खुश थे। इनाम के तौर पर उन्होंने जमीन का छोटा सा हिस्सा मेरे नाम कर दिया था। मेरी तो ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं था। हमने उस जमीन पर अपना छोटा सा घर बनाया। माँ बहुत खुश थी वह दिन रात घर सजाती रहती और उसी में मग्न रहती। माँ के चेहरे पर ख़ुशी देखना ही मेरा सपना था। मुझे माँ के चेहरे पर फ़रिश्ते का नूर दीखता था। हम दोनों अपने छोटे से राज महल में बहुत खुश थे।
उन्ही दिनों ठाकुर साहब की बहन मालिनी अपनी पढ़ाई पूरी कर के लंदन से लौटी थी। जमीन के उस टुकड़े के लिए जो ठाकुर साहब ने हमें दी थी , दोनों भाई बहन के बीच काफी बहस होने लगी। मालिनी उस जगह पर अपना स्कूल खोलना चाहती थी। ऐसा माँ ने बताया पर ठाकुर साहब ने गरजते हुए कहा " वो जमीन मैने साहिल को देदी है । अब उस जमीन को भूल जाओ ।'" एक दिन मैं घर लौटा तो मालिनी को अपने घर पर देख कर मैं चौक गया। वह माँ के लगाए बाग़ के हर फूल को बड़े प्यार से देख रही थी। मुझ पर नजर पड़ते ही मुसकुरा कर बोली "आप है साहिल जी , मैंने बहुत सुना है आप के बारे में। " अपने घर में उस कमसिन बाला को देख मै सकपका गया था । उसने मुझे भाँपते हुए कहा '' इतने खूबसूरत फूलों को आपने यहां छुपा रखा है। मुझे गुलाब के फूलों का गुलदस्ता चाहिए।'' माँ जो अब तक शांत थी चहक कर बोली 'अभी बना देती हूँ मेम साहब '' कहती हुई माँ बगीचे में चली गयी और सारे गुलाब तोड़ लाई और बहुत ही सूंदर गुलदस्ता तैयार कर दिया। गुलदस्ता लेते हुए मालनी मुस्कुराते हुए बोली ''मुझे रोज गुलाब का ऐसा ही गुलदस्ता चाहिए।'' '' जी जरूर मैं रोज लाकर दूँगा '' उनके आग्रह को मैं ठुकरा नहीं पाया। अब तो यह रोज का नियम हो गया था। रोज सुबह गुलाब का गुलदस्ता लेकर मै उनके कमरे में जाता फूलदान में सजा कर लौट आता। मालिनी मेरी खट- खट सुन कर अंगराई लेते हुए अध् खुले आँखों से मुझे देखते हुए कहती 'आगये आप '.उसकी आवाज में-एक कशीश थी सुन कर मुझे कुछ कुछ होने लगा था। मुझे देख कर लहरा कर उसका अंगराई लेना। सुराहीदार खूब सूरत गर्दन को उठा कर अध् खुली आँखों से मुझे देखना। उसके गोरे गालों पर हल्की लाली का खुमार। उसके रस भरे गुलाबी होंठ। ऐसा लगता उसका छलकता यौवन मुझे मौन आमंत्रण दे रहा हो। हर दिन मै बहुत मुश्किल से खुद को समेटता पर अगले दिन उसके हुस्न के सामने मैं कतरा कतरा बिखर जाता। एक दिन मैं फूल गुलदस्ते में डाल कर जाने को मुड़ा ही था की मालनी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने करीब खींच लिया। मेरा दिल जोर जोर से उछल रहा था। मुझसे लिपट कर बोली '' तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। '' उसकी सांसों की गर्मी को इतने करीब से महसूस कर मै मदहोश हो गया था। बहुत समय तक हम एक दूसरे के बांहों में थे। ओह ,,,,मैं तो सब कुछ भूल बैठा था ।
अब तो मेरे रातों की नींद उड़ गयी थी। सारी सारी रात खुली आँखों से सुबह की पहली किरण का इंतजार करता। अब हम रोज मिलने लगे थे। धीरे धीरे हमारा प्यार परवान चढ़ने लगा। हम सब कुछ भूल कर एक दूसरे में खोये रहने लगे। कहते है न इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते। हमारे प्यार की चर्चा कानों कानों से होती हुई मालिक के कान तक पहुँच गयी। उन्होंने मुझे काम से निकाल दिया , इतना ही नहीं गुंडों से भी बहुत पिटवाया। खबर माँ तक पहुंची ,वह भागती हुई आई और मालिक के क़दमों से लिपट कर अपनी जिंदगी की दुहाई देने लगी। उन्होंने माँ पर तरस खाते हुए कहा '' इसे समझा देना अपनी औकाद में रहे वरना अगली बार जान से मार दूंगा। जमीं की धूल सर का ताज नहीं बना करती समझी।।।।।'' चीखते हुए मालिक ने कहा '' अगली बार मेरी बहन को सपने में भी देखा तो उसकी आँखें फोड़ दूँगा , ले जाओ साले को बाहर फेंक दो।'' उनके आदमी अधमरे हालत में मुझे मेरे घर के सामने पटक कर चले गए। माँ ने किसी तह मुझे संभाला मेरी मरहम पट्टी की। कुछ घंटों में मुझे होश आया पर मै उठने की हालत में नहीं था। १५ दिनों तक मै बिस्तर पर पड़ा रहा। माँ दिन रात मेरी सेवा करती ,मुझे सहलाती ,मुझे समझाती रही ''बेटा ये तू क्या कर रहा है, ये सही नहीं है। तू इन बड़े लोगों को नहीं जानता। ये अपनों से प्यार नहीं करते तो परायों से क्या करेंगे। तू नहीं समझेगा ,ये सब इस जगह को हथियाने की चाल है। सुन भी रहा है तू ,,,,,,कुछ समझ भी रहा है तुम्हें ,,,,,,,,मै क्या बोल रही हूँ '' पर मैं कुछ भी समझने की स्तिथि में नहीं था। मेरे दिलों दिमाग पर प्यार का ऐसा नशा छाया हुआ था कि मैं बिन पिए ही होश खो बैठा था। दिन रात मालनी का हसींन चेहरा आँखों के सामने होता , उसकी अंगड़ाई लेती लटें ,उसके बदन की खुशबु मुझे पागल कर रही थी। प्यार तो सदियों से पीटता ही आया है। इतिहास गवाह है । प्यार की किताब का हर पन्ना दीवानों के खून से सना है। मेरा पागल पन भी चरम सीमा पर था।मेरे लिए मान अपमान का ,मेरी बेकारी का और इस मार पिटाई का कोई अर्थ ही नहीं था। मेरी नशों में दौडते खून का उबाल और मेरे जूनून का एक ही नाम था " मालनी " उसे पाना ही मेरे जीवन का एक मात्र मकसद हो गया था पर मालनी बिल्कुल खामोश थी। उसकी इस रुसवाई ने मेरे दिल की लगी आग में घी का काम किया। स्वस्थ होते ही माँ के लाख मना करने पर भी मैं उसे धकेलता हुआ , मालनी से मिलने उसके कोठी पहुँचा। ठाकुर साहब घर पर नहीं थे। मैं सीधे मालनी के कमरे में पहुँच गया। वह बिस्तर पर लेटी थी ,मुझे देखते ही घबडा कर उठ बैठी। मैंने आव देखा न ताव बस उसे बाँहों में लेकर प्यार करने लगा। मैं अपनी दिल की लगी को बुझाने में इतना व्यस्त था कि मुझे अहसास ही नहीं हुआ की मालनी बार बार ढकेल कर मझे खुद से दूर करने का प्रयास कर रही थी। उसने जोर से मुझे झटकते हुए कहा '' झूठा प्यार दिखाने की जरूरत नहीं है ''
''मालनी मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता और तुम्हे मेरा प्यार झूठा लगता है '' तड़प कर मैंने कहा
''तो इतने दिन कहाँ थे '' मालनी ने नाराजगी दिखाते हुए कहा।
''मालिक के गुंडों ने इतना मारा था कि मै चलने की स्तिथि में नहीं था। '' कहता हुआ मैंने उसे अपने सारे जख्म दिखाए ।
'' बस इतनी सी चोट से हार गए यदि सच्चा प्यार करते तो हर हाल में आते ''
''मैं दुनियाँ में सबसे ज्यादा प्यार तुम से करता हूँ '' कहता हुआ मैं तड़प कर उसे गले से लगा लिया था पर मुझसे दूर जाते हुए वह बोली '' अच्छा और अपनी माँ को ,,,,,,,,,माँ को तुम प्यार नहीं करते ?''
''करता हूँ माँ को भी प्यार करता हूँ ''
"मैं अपने प्यार को बंटते हुए नही देख सकती । तुम्हें हम दोनों में से एक को चुनना होगा और हाँ ,मेरी एक शर्त है। ''
''कैसी शर्त '' आश्चर्य से मैंने उसे देखते हुए पूछा। '
' तुम्हे अपनी माँ का कलेजा निकाल कर लाना होगा और मेरे हाथों में देकर मुझे 'आई लव यू ' कहना होगा। तभी मुझे भरोसा होगा कि तुम इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार मुझसे करते हो। ''
''क्या,,,, '' अवाक् रह गया था मै , आगे कुछ कह पाता , मालनी ने मुझे धकेल कर दरवाजा बंद कर लिया।मैं वहीँ दिवार के सहारे बैठ गया। मेरा सर घूमने लगा था। ये क्या शर्त रख दी थी मालनी ने ,,,,,,,,,दिलोँ दिमाग और शरीर के हवस की जंग से बदहवास हो मैं घर पहुँचा। बहुत कोशिश की इस बात के लिए मालनी से नफरत करूँ पर कर नही सका । ये जो छः इंच का ये छोटा सा दिल है न, वो छः हाथ के शरीर पर बहुत भारी पड़ रहा था। मेरा मालनी के प्रति पागल पन और बढ़ता जा रहा था। मैं अपना मानसिक संतुलन खोता जा रहा था। मुझे माँ को देख कर गुस्सा आने लगा था क्योकि माँ हर पल मुझे मालनी से बात करने ,उसके पास जाने से रोकती ।मैं माँ से चिढ़ने लगा था। उनकी हर बात पर चिल्लाता क्योकि मुझे लगता माँ मेरे प्यार को , मेरी हालत को समझ ही नहीं पा रही है। यही मेरे बीच की दीवार है । कई दिनों तक पूरी पूरी रात मैं बिस्तर पर करवटे बदलते काटता, ऐसा लगता मानो हजारों बिछु मेरे शरीर पर चल रहे है। किताबों में बहुत पढ़ा था'' प्यार ये होता है प्यार वो होता है' पर प्यार की आग इन्शान को जला कर खाक कर देती है ये नहीं पता था। .उस दिन मैं आपे में नहीं था ,मै तड़प कर मालिनी से मिलने महल पहुँचा। मालनी मुझे देखते ही दरवाजा बंद कर लिया।मैं दरवाजा पीटता रहा , उससे प्यार की भीख माँगता रहा पर मालनी ने दरवाजा नहीं खोला। पिटे हुए जुआरी की तरह लड़खड़ाते क़दमों से मै शराब की दुकान पर पहुँचा ,जम कर शराब पी ;किसी तरह गिरते पड़ते घर पहुँचा।मुझे इस हालत में देख कर माँ ने माथा पीट लिया और गुस्से में चीखते हुए बोली ''क्या होगया है तुम्हें ,,,,,क्या हालत बना ली है ,,,,,,,पागल कर दिया है उस लड़की ने तुम्हे ,,,,,'',
'' हाँ ,,,,,,,,,,,कर दिया है पागल ,क्या करोगी तुम। '' चीखते हुए मैंने माँ से कहा।
''तू आपे में नहीं है बेटा,,,,,, तू कुछ समझ नहीं पा रहा है । वो तुम्हे कभी नहीं मिलेगी वो खेल रही है तुम्हारे साथ ,,,।'' गुस्से में चीखते हुए माँ ने कहा।
''क्यों नहीं मिलेगी ,,,,,वो हमसे प्यार करती है। मिलेगी,,,,,,, मिलेगी,,,,,,,,,जरुर मिलेगी ,,,,,,'' मैं गुस्से से फट पड़ा था औऱ माँ को धकेलता हुआ अपने कमरे में चला गया। मैं गुस्से से काँप रहा था। अब मालनी को पाने का जूनून सर चढ़ गया था। सारा दिन बिस्तर पर पड़े पड़े गुजारा। माँ के बहुत आवाज देने पर भी नहीं उठा।माँ के कहे शब्द नश्तर बन कर चुभ रहे थे। रात के साथ साथ मेरे अंदर का पागल पन बढ़ने लगा था। मैं धीरे से उठा । दिमाग सुन्न था और दिल चीत्कार रहा था ''मालनी को पाना है तो शर्त पूरी कर ,,,,,,,,,''. मैं माँ के कमरे में गया। माँ गहरी नींद में सो रही थी। मैंने आव देखा न ताव तकिया से उनका मुँह दवा दिया , थोड़ी देर वो छटपटाती रही ,हाथ पाँव मारती रही फिर अचानक से उनका शरीर शांत हो गया । रात के दो बजे थे। मैंने तकिया को उसके मुँह पर ही छोड़ दिया। अपने जेब से तेज धार का चाकू निकाला ,जो मैं रसोई से लेकर आया था और उनके छाती पर वार किया। उसके शांत शरीर में हल्की सी हरकत हुई फिर सब शांत हो गया। ,मैंने कलेजा निकाल कर एक कपड़े में लपेटा और महल की तरफ भागा। मेरा शरीर मेरे काबू में नहीं था। एक तो शराब का नशा,और दूसरा अपनी जीत का नशा। मेरे पाँव जमीन पर नहीं थे। ठण्ड की रात थी पर मैं पसीने से तर बतर था। एक ही ख्याल दिलों दिमाग पर हावी था किसी भी कीमत पर मुझे मालनी को हासिल करना है । मैं बेतहाश भागा जा रहा था , गहरी अँधेरी रात थी ,रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। अचानक बड़े से पत्थर से टकरा कर गिर पड़ा। . पाँव में बहुत जोर से चोट आई थी। लहूलुहान हो गया था मैं ,आदतन मुँह से कराह निकली "आह ,,,, माँ ,,,,,,,,,,,, ,पॉँव पकड़ कर मै वहीं जमीन पर लोट गया। तभी आवाज आई " अरे बेटा क्या हुआ,,,,, गिर गया क्या ,,,,,,तुम्हें चोट तो नहीं आई,,,,, च,,,, च,,,, च,,,,,, मैं तुम्हे कैसे उठाऊँ बेटा,,,,,,, कैसे सम्भालूं तुम्हें,,,,, , उठजा मेरे लाल ,,,,,,,,उठ जा ,,,,,। '' माँ की आवाज सुन कर मैं घबरा गया। इधर उधर देखा तो नजर माँ के कलेजे पर अटक गई जो मेरे हाथ से छटक कर दूर जा गिरा था ,और जोर जोर से फुदक रहा था। ,जिसमे से ऊ ,,,,,,,,ऊ ,,,,,,,,की आवाज आरही थी.,पूरा कलेजा भीगा हुआ था। मैं घबरा गया । जबरदस्त चोट से शराब का नशा उतर गया था।माँ के कलेजे को देख चीख पड़ा '' माँ,,,,,माँ ,,,,,''। माँ के कलेजे से लगातार आवाज आरही थी बेटा ,,,,,,,तू ठीक तो है न,,,,,, ,ज्यादा चोट तो नहीं आई ,,,,,,,,बेटा अपना ध्यान रख ,मै कैसे तुम्हे सम्भालूं ,,,,,,, बेटा धीरे चला कर मेरा बच्चा ,,,,,,,,,, '' हसीन ख्वाबों के समंदर में गोता लगा रहा था मैं , उफनाती लहरों ने जब मुझे हकीकत के चट्टानों पर पटका तो मुँह से आह निकल आई ,,,,ये मैंने क्या,,, किया , ओह ये मैंने ,,,,,क्या ,,,,,किया ,,,,,,मै पागलों की तरह बाल नोचने लगा। माँ ,,,,,,माँ ,,,,,,चीखता हुआ माँ के कलेजे को उठा कर अपने कलेजे से लगा लिया।उसमे से एक ही आवाज आरही थी '' बेटा ,,,तू ठीक तो है न ,ज्यादा चोट तो नहीं आई मेरे लाल ।'' माँ ,,,,माँ ,,,,,कहता हुआ मैं फबक फ़बक कर रो पड़ा। रात का गहरा सन्नाटा मुझे अहसास दिला रहा था कि मैं कितना बड़ा अभागा हूँ। मैंने अपने हवस की आग मेंअपना आशियाना जला डाला था। मै अनाथ हो गया था। मेरे घिर्णित कर्मों को देख कर पूरी कायनात सिहर उठी थी। रात भी स्तब्ध हो ठहर गयी थी ,,,,,,बीतने का नाम ही नहीं ले रही थी। मै माँ के कलेजे को हाथों में लिये घंटों रोता रहा,बिलखता रहा। कितना अकेला होगया था मैं । रात के गहन सन्नाटे में मेरी आवाज मुझे ही डराने लगी थी। मै टूटे हुए क़दमों से महल की तरफ चल पड़ा। कदम जरूर लड़खड़ा रहे थे पर दिल ने अपनी सजा मुकर्रर कर ली थी।
मेनगेट बंद था और कोई दिन होता तो मैं हमेशा की तरह चुपके से पाइप के सहारे मालनी के कमरे में पहुंच जाता पर आज तो जिंदगी अलग ही मुकाम पर थी और दिल कटघरे में खड़ा अपनी सजा का इंतजार कर रहा था। मै जोर जोर से मेंन गेट पीटने लगा। कुछ ही देर में पुरे महल की बत्ती जल गयी। मेनगेट खोला गया , आवाज सुन कर महल के सारे लोग वहाँ इकट्ठे थे। मुझे देखते ही ठाकुर साहब चीख पड़े तुम ,,,,,,,इतनी रात को ,,,,यहाँ,,, ? उनके किसी भी सवाल का जबाब दिए बिना मै मालनी की तरफ बढ़ गया। कपड़े में लिपटे माँ के कलेजे को निकाल कर मालनी के हाथों में रख दिया। वह खून से लथ पथ कलेजे को देख कर घबरा गयी और उसे दूर फेंकते हुए चीख पड़ी ''ये क्या है ,,,,,,,,,''?
''मेरी माँ का कलेजा है यही चाहिए था न तुम्हे ,लो हाथ में लो ,अभी तो तुम्हारी दूसरी शर्त बांकी है ''चीखते हुए मैंने कहा और माँ का कलेजा उसके हाथों पर रख कर चिल्लाते हुए बोला ''आई हेट यू ,,,,,,,,,,,,,आई हेट यू ,,,,,,,,,,और पलक छपकते ही मैंने अपनी कटार निकाली और उसकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया। खून की नदी बह गयी थी , उसका सर धड़ से अलग हो चूका था पर छटपटाहट बांकी थी। उसे छटपटाते देख मेरे अंदर की छटपटाहट कम हो गयी थी। सब सकते में थे ,ये सब इतना जल्दी हुआ की सब पत्थर के बूत बन गए थे। वे सब अपना होश खो चुके थे बस फटी फटी आँखों से मुझे देख रहे थे और मै उस खून की नदी को पार कर खून से लथ पथ कटार लिए पुलिस स्टेशन आ पहुँचा क्योकि मेरी सजा अभी बाँकी थी। मेरा गुनाह बहुत बड़ा था, इसलिए मेरी सजा भी बहुत भयानक होनी चाहिए थी।मेरा जुर्म इतना भयानक था कि पुलिस भी सन्नाटे में थी। बात ऊपर तक गयी।बड़े आला अधिकारीयों ने प्रधान मंत्री जी को पूरी घटना से अवगत कराया। मैंने विडिओ कॉलिंग पर प्रधान मंत्री जी के सामने अपना कन्फेशन दिया। उन्होंने बहुत ही दुखी स्वर में कहा'' तुम जानते हो इस जुर्म के लिए तुम्हे फांसी की सजा होगी'' ''जी हाँ हुजूर मैं जानता हूँ मेरा जुर्म इतना खतरनाक है कि फांसी की सजा उसके लिए बहुत कम है पर मेरी आपसे से बिनती की कि मुझे खुले आम फांसी दी जाये।मैं विनती करता हूँ मुझे इतनी दर्दनाक मौत दी जाये कि मेरी मौत पूरी दुनियाँ वालों के लिए सबक हो।'' उन्होंने मेरी अंतिम इक्छा पूरी करने का आस्वासन दिया। जाते जाते एक आखरी बात आप सबों से कहना चाहता हूँ '' जिसे मै प्यार समझ कर अपने अस्तित्व को मिटा बैठा वो प्यार नहीं था दोस्त। प्यार तो वो था जो माँ मुझसे करती थी उनका रोम रोम मेरे लिए तड़पता था। दिल में उठते अरमानो के भवर जाल में फँस कर हम जिसे प्यार सझते है परख लेना वो प्यार है या आपकी बर्बादी का सबब। शर्तों की सीढ़ी चढ़ कर जो प्यार हासिल हो, वो प्यार हो ही नहीं सकता। प्यार देने का नाम है पाने का नहीं। । बात चाकू की हो या शब्दों के खंजर की उसका वार उन पर कभी नहीं करना जो आपसे बेपनाह मोहब्त करते है क्योकि धरती पर कहीं जन्नत हैं तो माँ बाप के चरणों में है। मेरी आप सबों से विनती है , जब भी इस घटना की याद आये मुझ पर थूक देना ,मुझे हजारों गालियाँ देना क्योकि ये नफरत ही है जो आप के अंदर के प्यार को जिन्दा रखने में सहायक होगी। अलविदा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
पुरे मैदान में सन्नाटा छागया था।साहिल का कन्फेशन समाप्त हो गया था पर सबों की आखें स्कीरिन पर गड़ी थी।साहिल के कहे एक एक शब्दों ने सबों को झझकोर कर रख दिया था। पुलिस के काफी कहने पर भीड़ धीरे धीरे छंटने लगीथी । सबों की जुबान पर ताला था और पाँव मन मन भर भारी थे। इस घटना की व्याख्या करने के लिए किसी के पास शब्द नहीं थे। मीडिया भी स्तब्ध थी।
निः शब्द थी पूरी प्रकीर्ति, स्तब्ध था आसमाँ।
फट पड़ा था धरती का सीना ,बिलख उठा था सारा जहाँ।
ये कहानी कभी मैंने अपनी दादी के मुँह से सुनी थी।इस कहानी को उन्होंने मात्र चार पंक्तियों में सुनाई थीI पर वो चार पक्तियां मेरे कलेजे में खंजर की तरह चुभ गए थे। जिसे 50 साल बाद आज मैंने कहानी का रूप दिया है।आज भी बच्चे माँ बाप के कलेजे को अपने कठोर शब्दों से,अपने घृणित व्यवहार से जख्मी करते है। तमाम उम्र के लिए उनके आँखों मे आँसू भर देते है। उन्हें जीतेजी बेघर कर मरने के लिए छोड़ देते है।
ऐसे नालायक बच्चों को आईना दिखाने की मेरी ये कोशिश है।
superb ma'am.....
ReplyDeleteBahut sundar hai appki kahani. Vijay Pratap Singh sankargharh prayagraj u p
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