"गीतों की तुरपाई में"(कविता)
अक्षर अक्षर लगा हुआ है,ऋतु बाला पहुनाई में।
कितने दोहे फंसे दिखे,काव्य जगत गहराई में।।
मन में जिनके द्वेष भरा,क्या लिखेंगे नयी कलम से,
मैंने जीवन बिता दिया,गीतों की तुरपाई में।।
कंचन महल खड़े हों भाई, गज द्वारे बांधा हो,
भूखा पेट भिक्षुक लौटे,लाला की चतुराई में।।
वह दान कहाँ से देंगे,जग फैली बीमारी में,
जिनका ध्यान लगा रहता,अपनी आना पाई में।।
जिन अधरों से अपशब्द निकलते,दुनिया कहती है,
देगा कंधा कौन उसे अब,मिट्टी की उठवाई में।।
झरते आँसू जज आंखों से,कोई मयंक देखे तो,
महिला पीड़ित दशा बताती,पल पल सुनवाई में।।
nice.... superb.....
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