"निरंकुश न बने"(लेख)

निरंकुश न बने

वर्तमान में,जाने अनजाने जो लोग नशा में,जुएं में,अपराध में,पाप में,कुसंगति में,व्यर्थ खर्च में,परनारी प्रेम में,लोभ में स्वार्थ में,दिखावे में लिप्त हैं।जिससे उनका जीवन नष्ट हो रहा है,परिवार छिन्न भिन्न हो रहा है।

       इसका मूल कारण है,कि वे निरंकुश हैं,अपने आगे किसी को मानते नहीं,उनके मित्र,उन्हें सुधरने देना नहीं चाहते।

     ऐसे बिगड़े इंसान,जब कभी घण्टे,दो घण्टे या दो चार दिन के लिये,आचार्य,गुरू, पथ प्रदर्शक,सन्त महात्मा के सम्पर्क में आ जाते हैं,तो वे उन्हें स्वच्छता से,प्रेम से,अपने ज्ञान से साहित्य,संगीत,कला,परोपकार,सत्कर्म करने का मार्ग दिखाते हैं।पर नारियों का सम्मान करना,शुद्ध अल्प भोजन,जीवन के नियम संयम में ढालते हैं,योग,व्यायाम,ध्यान का आंतरिक आनन्द रस पिलाते हैं।जो इस कसौटी में खरे उतर जाते हैं,वह सुधर जाते हैं,उनके परिवार में सुख,शांति,यश,वैभव,लक्ष्मी, फिर से वास करने लगतीं हैं।

         अवगुण को त्यागने के लिये,महापुरुषों के सानिध्य में,उनकी शरण में,उनकी सेवा में,रहना चाहिये।

वरिष्ठ कवि लेखक
साहित्य सम्पादक

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)