"राष्ट्रभक्त"(लेख)

राष्ट्रभक्त

चंदन के टुकड़े को,सूर्य की तेज गर्मी में रखा जाय,किन्तु चंदन न तो अपना स्वाभाविक रंग बदलता है और न शीतलता का त्याग करता है।

         चंदन के चाहे लाख टुकड़े कर दिये जायें,चाहे पीस दिया जाय,फिर भी वह अपनी शीतलता को नष्ट नहीं होने देता।

         ठीक उसी प्रकार भारत का गौरवशाली राष्ट्रभक्त,राष्ट्र रक्षक जवान,सच्चा राष्ट्रप्रेमी के समक्ष चाहे जैसी विषम स्थितियाँ आ जायें, उसे किसी कारणवश अनगिन यातनायें मिलें,चाहे दीवारों में चुनवा दिया जाय,चाहे स्वर्ण मुद्राओं का लालच दिया जाय,किन्तु वह अपने राष्ट्र का,कभी विरोधी होगा,न गद्दार होगा,न अपने राष्ट्र का अहित की सोंचेगा, न राष्ट्र के विरोध में हिंसक बनेगा।

        उसके रग रग में राष्ट्र सर्वोपरि है,राष्ट्रप्रेम है,उसका जीवन अपने राष्ट्र के लिये है,राष्ट्र की सुख,समृद्धि,सम्पन्नता को देखने के लिये है,राष्ट्र की विचार धारा को क्रमशः बढ़ाने के लिये है,राष्ट्र को सुसम्पन्न हित नयी पीढ़ी को जगाने के लिये है,राष्ट्र रक्षा हित शहीद हुए अमर क्रांतिकारियों की गाथा गाने के लिये है।

        हजारों में सच्चा एक राष्ट्र भक्त होता है और राष्ट्र प्रेमी।जिसे दुनिया की कोई ताकत न डिगा सकती है,न खरीद सकती है,न गुलाम बना सकती है।हमें अपने भारतीय राष्ट्र भक्तों पर,राष्ट्र प्रेमियों पर नाज है।जय हिंद,जय भारत।

वरिष्ठ कवि लेखक
साहित्य सम्पादक

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