"नवगीत गाना चाहता हूँ"(गीत)

उगता गया हूँ , इस दोहरे चरित्र से ,

अब तो ख़ुदी में जीना चाहता हूँ , नवगीत गाना चाहता हूँ ।।


आपा-धापी की लहर में , रिश्ते-नाते बह रहे हैं

अपने-पराये की नज़र में , तार-तार हो रहे हैं

स्वार्थ की लंबी कतारें , इस छोर से उस छोर तक

घृणा के उगते शज़र में , विष- बेलियाँ लिपटा रहे हैं

तस्वीर धुंधली , मन के दर्पण की , हटाना चाहता हूँ ।। नवगीत गाना ---


शक्ति पाते भूल बैठा , इंसान सारी सरहदें

टूटतीं पल-पल रहीं , विश्वास की यूँ हर जदें 

कौन माने ? कौन जाने ? रात-दिन कितने बिके

बंद मुट्ठी जब भी खुली , गुलजार दिखते मयकदें 

बेबसी में भीगीं पलकें ही , पोंछना चाहता हूँ ।। नवगीत गाना  -----


न समझ पाये प्रकृति , बस अंजान यूँ तकते रहे

जब तमाचा पड़ा सीधे , बस गाल यूँ मलते रहे

रक्षक ही भक्षक बने , ताड़ना नित-नित , बदले तरीके

हिम- दु:खद अवसाद में , बस जमते रहे , गलते रहे

लेकर हृदय में तीव्र ऊष्मा , अब पिघलना चाहता हूँ ।। नवगीत गाना----


मज़मा जमाये बैठे हैं , शराफ़त का खोले पिटारा

लूटते मौका मिले जब , दिख रहा चहुँ-दिशि नज़ारा

कागजों से पेट भरते ,दया का यूँ ही आडंबर रचते 

ज़ज़्बात की बाज़ीगरी का , खेल खेले मिल बेचारा 

ऐसे चालबाज़ों के मुखौटे , हटाना चाहता हूँ ।। नवगीत गाना-----


झांक लें अपने गिरेबाँ , भूल कर अपने अहम को

महकायें बागबाँ , यूँ भूल कर अपने वहम  को

कुछ कर्म अच्छे करें , फिर ये तन मिले या न मिले

बचपने में लौट जायें , भूल कर अपने अलम को

फूले- फले हर आस उपवन , यही गुनगुनाना चाहता हूँ ।। नवगीत गाना------


उकता गया हूं इस दोहरे चरित्र से ,

अब तो खुदी में जीना चाहता हूँ , नवगीत गाना चाहता हूँ ।।

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