"Online की रफ्तार"(कविता)

  

न जाने online ये कैसी

दोस्ती हो गई अब

न जाने उस पर इतना क्यों विश्वास

आज online है तो वो कल offline

फिर भी दिल में इतनी इक्छाए क्यों । 


क्या मुझमें ही है

इतनी उत्सुकता उसमें भी है

मुझसे बात करने को

ये दोस्ती साल भर की हो गई

फिर भी कुछ बाते अधूरी - सी रह गई । 


तेरे साथ online आने से ये समय की रफ्तार

मानो कितनी तेजी में हो

माना ट्रेन एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन

अपने राहा की ओर पहुंचती है । 


मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता

किस स्टेशन पर है तू

समय से लौट आए तू

यही इंतजार करती । 


तेरे लेट आने से गुस्सा

तो बहुत रहता था मन में

तेरा online message आते ही

गुस्सा का 'ग' भूल जाती

 कुछ ऐसी ही हमारी 

online दोस्ती वाली chatting का संसार । 


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