"Online की रफ्तार"(कविता)
न जाने online ये कैसी
दोस्ती हो गई अब
न जाने उस पर इतना क्यों विश्वास
आज online है तो वो कल offline
फिर भी दिल में इतनी इक्छाए क्यों ।
क्या मुझमें ही है
इतनी उत्सुकता उसमें भी है
मुझसे बात करने को
ये दोस्ती साल भर की हो गई
फिर भी कुछ बाते अधूरी - सी रह गई ।
तेरे साथ online आने से ये समय की रफ्तार
मानो कितनी तेजी में हो
माना ट्रेन एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन
अपने राहा की ओर पहुंचती है ।
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
किस स्टेशन पर है तू
समय से लौट आए तू
यही इंतजार करती ।
तेरे लेट आने से गुस्सा
तो बहुत रहता था मन में
तेरा online message आते ही
गुस्सा का 'ग' भूल जाती
कुछ ऐसी ही हमारी
online दोस्ती वाली chatting का संसार ।
Written by #लेखिका_पूजा_सिंह
Thanks 😊
ReplyDeleteNaye yug ki nae kavita... Bahut achhi kavita hai...
ReplyDeleteThanks sir
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