"बेड़ियाँ"(कविता)

उमड़ी चीटियां गोरी नहीं ,

प्रियतमा ! तस्वींरें निचोड़ी नहीं ।

इश्क़ तेरा रिश्वतखोरी नहीं ,
कहीं से चोरी नहीं ।

कुत्तों संग घोड़ी नहीं ,
क्या सुना लोड़ी नहीं ?

यादें तो थोड़ी नहीं ,
बेड़ियाँ क्यूँ तोड़ी नहीं ?

कल्पना है कोरी नहीं,
ख्वाहिशें भी तोड़ी नहीं ।

रंगमंचों पे डोरी नहीं ,
खिलती कलियाँ भगोड़ी नहीं ।

बातें अनकही छिछोरी नहीं ,
मजदूरी भारी बोरी नहीं ।

खुद्दारी पा झकझोरी नहीं ,
अलबत्ता पहेली मरोड़़ी नहीं ।

कविता कहीं तिजोरी नहीं ,
अश्कों से त्योरी नहीं ।

खाली कहना-सुनना थ्योरी नहीं ,
निशा दांतें निपोरी नहीं ।

Comments

  1. इश्क़ तेरा रिश्वतखोरी नहीं ,
    कहीं से चोरी नहीं ।
    Touching lines...

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