"बेड़ियाँ"(कविता)
उमड़ी चीटियां गोरी नहीं ,
प्रियतमा ! तस्वींरें निचोड़ी नहीं ।
इश्क़ तेरा रिश्वतखोरी नहीं ,
कहीं से चोरी नहीं ।
कुत्तों संग घोड़ी नहीं ,
क्या सुना लोड़ी नहीं ?
यादें तो थोड़ी नहीं ,
बेड़ियाँ क्यूँ तोड़ी नहीं ?
कल्पना है कोरी नहीं,
ख्वाहिशें भी तोड़ी नहीं ।
रंगमंचों पे डोरी नहीं ,
खिलती कलियाँ भगोड़ी नहीं ।
बातें अनकही छिछोरी नहीं ,
मजदूरी भारी बोरी नहीं ।
खुद्दारी पा झकझोरी नहीं ,
अलबत्ता पहेली मरोड़़ी नहीं ।
कविता कहीं तिजोरी नहीं ,
अश्कों से त्योरी नहीं ।
खाली कहना-सुनना थ्योरी नहीं ,
निशा दांतें निपोरी नहीं ।
Written by विजय शंकर प्रसाद
इश्क़ तेरा रिश्वतखोरी नहीं ,
ReplyDeleteकहीं से चोरी नहीं ।
Touching lines...