"इश्क"(कविता)


अदालतों में अर्जी नुमाइंदगी है ,

बादल  कहाँ  पे अटकता  है ?


मुकामें तलाशी में ठगी है ,

वादा कुर्सी हेतु लटकता है ।


सीता होना तो दिलग्गी है ,

नैतिकता अब बिकता है ।


बाजारूं आकृतियों की अदायगी है ,

सियासी सांपों तक उपभोक्ता है ।


श्रृंगारें दर्पण में गुमशुदगी है ,

प्यासी मोहिनी सुवर्णांगी भावुकता है ।


दीवारों तक क्या बंदगी है ,

आग तले क्या भटकता है ?


रंगों पे खेती आवारगी है ,

धुआं यहीं चिपकता है ।


नयना में यूं विरानगी है ,

तन्हाइयों में दिल थिरकता है ।


फूलों से कहाँ नाराजगी है ,

कहाँ नहीं मादकता है ?


शूलों का चुभना बानगी है ,

तलाकें  क्यूँ राही बकता है ?


क्या यहाँ आजादी आवारगी है ,

क्या सूरज भी सनकता है ?


प्रेयसी ! तू कैसी सगी है ,

सच्चा  को क्या ढंकता है ?


दागी बता क्यूँ ठगी है ,

झूठा आखिर किसे  पटकता है ?


क्यूँ तुझसे  नग्नता उगी है ,

अंधेरा में क्या नहीं चिपकता है ?


भूखे हेतु कहाँ सादगी है ,

प्यासा क्या -क्या तुझसे लपकता है ?


मजबूरी या मर्जी  जिंदगी है ,

शिकवा जड़ों तक पकता है ।


परछाइयां जहां रंगी लगी हैं ,

वहाँ आग कहाँ दुबकता है ?


क्या रूहानी रसपानें गंदगी है , 

छलों तक क्या -क्या  टपकता है ?


 इश्क़ है तो ताजगी है ,

किसे यहाँ वासना झलकता है ?


मधुमासें ,मधुशाला , 

नशा बागी है-महफिलों में कैसी रौनकता है ?

Written by विजय शंकर प्रसाद

Comments

  1. श्रृंगारें दर्पण में गुमशुदगी है ,

    प्यासी मोहिनी सुवर्णांगी भावुकता है ।
    Heart ❤️ touching...

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