"राहुल के उद्धरणों का नोट्स"

 128 वीं राहुल सांकृत्यायन जयंती  

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◆राहुल के उद्धरणों का नोट्स : गोलेन्द्र पटेल◆

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प्रखर शोधार्थी, महान घुमक्कड़, दार्शनिक, भाषाविद्, चिंतक, साम्यवादी, किसान नेता, भारत के व्हेनसांग राहुल सांकृत्यायन का जन्म आज ही दिन 9 अप्रेल 1893 को पंदहा, आजमगढ़ में हुआ था। इनका नाम केदार पांडे था। आरंभिक शिक्षा के दौरान बाल विवाह हुआ और इससे रुष्ट केदार ने यह पंक्तियाँ सुन लीं - 


सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ

जिंदगानी रह भी गई तो नौजवानी फिर कहाँ....!


सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी, कनैला की कथा, बाईसवीं सदी, जीने के लिए, सिंह सेनापति, जय यौधेय, भागो नहीं दुनिया को बदलो, मधुर स्वप्न, राजस्थान निवास, विस्मृत यात्री, दिवोदास, मेरी जीवन यात्रा, सरदार पृथ्वीसिंह, नए भारत के नए नेता, बचपन की स्मृतियाँ, अतीत से वर्तमान, स्तालिन, लेनिन, कार्ल मार्क्स, माओ-त्से-तुंग, घुमक्कड़ स्वामी, मेरे असहयोग के साथी, जिनका मैं कृतज्ञ, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन, कप्तान लाल, सिंहल के वीर पुरुष, महामानव बुद्ध, लंका, जापान, इरान, किन्नर देश की ओर, चीन में क्या देखा, मेरी लद्दाख यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, तिब्बत में सवा वर्ष, रूस में पच्चीस मास, घुमक्कड़-शास्त्र जैसी कालजयी कृतियों के कृतिकार साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, त्रिपिटिकाचार्य आदि सम्मानो से सम्मानित बहुमुखी प्रतिभा के धनी यायावर - "राहुल सांकृत्यायन" 

को उनकी जयंती पर नमन!


महत्वपूर्ण उद्धरण :-

1.

"नारी का ब्याह, अगर उसके ऊपरी आवरण को हटा दिया जाए तो इसके सिवा कुछ नहीं है कि नारी ने अपनी रोटी-कपड़े और वस्त्राभूषण के लिए अपना शरीर सारे जीवन के निमित्त किसी पुरुष को बेच दिया है।"

- राहुल सांकृत्यायन


2.

"मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना"---इस सफेद झूठ का क्या ठिकाना। अगर मजहब बैर नहीं सिखलाता तो चोटी-दाढ़ी की लड़ाई में हज़ार बरस से आज तक हमारा मुल्क पामाल क्यों है? पुराने इतिहास को छोड़ दीजिये,आज भी हिन्दुस्तान के शहरों और गाँवों में एक मजहब वालों को दूसरे मजहब वालों के खून का प्यासा कौन बना रहा है? कौन गाय खाने वालों से गोबर खाने वालों को लड़ा रहा है? असल बात यह है--"मजहब तो सिखाता है आपस में बैर रखना। भाई को है सिखाता भाई का खून पीना।" हिन्दुस्तानियों की एकता मजहबों के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मजहबों की चिता पर।"

[राहुल जी, 'तुम्हारी क्षय' में।]


3.

मानसिक दासता प्रगति में सबसे अधिक बाधक होती है।" 

-राहुल सांकृत्यायन (दिमागी गुलामी)


4.

बाहरी दुनिया से अधिक बाधाएँ इंसान के दिल में होती हैं।

-राहुल सांकृत्यायन 

(घुमक्कड़ शास्त्र)


5.

रूढ़ियों को लोग इसलिए मानते हैं, क्योंकि उनके सामने रूढ़ियों को तोड़ने वालों के उदाहरण पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं।

-राहुल सांकृत्यायन


6.

“बड़े की भाँति मैंने तुम्हें उपदेश दिया है, वह पार उतरने के लिए है, सिर पर ढोये-ढोये फिरने के लिए नहीं-तो मालूम हुआ कि जिस चीज़ को मैं इतने दिनों से ढूँढता रहा हूँ, वह मिल गयी.”

-राहुल सांकृत्यायन

(जीवन यात्रा)

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