"लकड़हारिन"(कविता)


तवा तटस्थ है चूल्हा उदास

पटरियों पर बिखर गया है भात

कूड़ादान में रोती है रोटी

भूख नोचती है आँत

पेट ताक रहा है गैर का पैर


खैर जनतंत्र के जंगल में 

एक लड़की बिन रही है लकड़ी

जहाँ अक्सर भूखे होते हैं 

हिंसक और खूँखार जानवर

यहाँ तक कि राष्ट्रीय पशु बाघ भी

  

हवा तेज चलती है

पत्तियाँ गिरती हैं नीचे

जिसमें छुपे होते हैं साँप बिच्छू गोजर

जरा सी खड़खड़ाहट से काँप जाती है रूह

हाथ से जब जब उठाती है वह लड़की लकड़ी

मैं डर जाता हूँ...!

Comments

  1. Nice lines...
    Mere hisab se es line me..
    एक लड़की बिन रही है लकड़ी
    Ek jagah लड़की honi chahiye...

    ReplyDelete

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