"किसान है क्रोध"(कविता)


निंदा की नज़र

तेज है

इच्छा के विरुद्ध भिनभिना रही हैं

बाज़ार की मक्खियाँ


अभिमान की आवाज़ है


एक दिन स्पर्द्धा के साथ

चरित्र चखती है

इमली और इमरती का स्वाद

द्वेष के दुकान पर


और घृणा के घड़े से पीती है पानी


गर्व के गिलास में

ईर्ष्या अपने

इब्न के लिए लेकर खड़ी है

राजनीति का रस


प्रतिद्वन्द्विता के पथ पर


कुढ़न की खेती का

किसान है क्रोध !

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