"पच्चीस साल बाद"(कहानी)

 पच्चीस साल बाद 

आज एक ऐसी सच्ची घटना लिखने का साहस जुटा रही हूं जिसका अंजाम मुझे मालूम नहीं लेकिन दुनिया को बताना चाहती हूं कि जब कोई युवती मां बनती है तो वो सिर्फ "मां " ही नहीं बनती है बल्कि वो एक योद्धा बन जाती है । उसे अपने बच्चें के पालन-पोषण और समुचित परवरिश के लिए किस किस तरह की लड़ाई लड़नी पड़ सकती है यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा । 21वीं सदी में भी ऐसे रूढ़ीवादी और दकियानूसी विचारधारा के लोग हो सकते हैं यह बड़ी हैरानी की बात है । मगर सच है एक मां को अपने बच्चें के जीवन रक्षा के लिए लगाए जाने वाले टीकाकरण अभियान को सफल बनाने एवं बच्चें को सुरक्षित करने के लिए एक युद्ध लड़ना पड़ा था । शहर में जन्मी और पढ़ी लिखी लड़की की शादी गांव में हो जाती है । ऐसे गांव में जहां चापा कल चला कर पानी भरना पड़ता था और बिजली की रौशनी और पंखे की हवा के लिए छः छः महीने इंतजार करना पड़ता था । इसका तो एक विकल्प था जेनरेटर खरीद लिया गया और घर को रौशन कर लिया गया लेकिन कुंठित विचार और रूढ़ीवादिता को खत्म करना आसान नहीं था । दो दिन यानी की 48 घंटे बहस के बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकला । किसी भी परिवार , संस्था , समाज या देश में कुशासन चलाने के लिए एक ही हिटलर काफी होता है और इस संभ्रांत समझे जाने वाले परिवार में दो दो हिटलर थे जिन दोनों के बीच घर का असली मुखिया भी अपना कर्तव्य पालन में असमर्थ हो गये थे और उस घर का बेटा इन तीनों के खिलाफ आवाज उठाए ऐसे संस्कार नहीं थें । अनुशासन और मर्यादाओं में बंधा हुआ बेटा मजबूर सा हो गया लेकिन मां तो मां है अपने बच्चें के लिए आवाज़ उठाने में संकोच नहीं किया और घर वालों को समझाने की कोशिश की मगर निराशा हाथ लगी सभी बड़ों ने एक स्वर में कहा "हम सभी जिंदा हैं हमारे बच्चे भी तंदरुस्त हैं और किसी ने "बीसीजी " का टीका नहीं लगाया है तुम्हारा बच्चा कोई अनोखा जीव नहीं पैदा हुआ है ‌। नहीं लगेगा कोई बीसीजी वीसीजी घर में बैठिए और अपना काम कीजिए बाहर निकलने की जरूरत नहीं है । जैसे बाकि बच्चे पले हैं वैसे ही यह भी पलेगा ... ।"

दो दिन मातम सा सन्नाटा छाया रहा तीसरे दिन बहुरानी ने अम्मा जी बाएं बाजू पर गड्ढे जैसा निशान छूकर पूछा कि ये क्या हो गया है आपको ? सासूमां ने कहा "ये पाछ का निशान है बचपन में सबको लगता है बाबूजी , भैयाजी और तुम्हारे पति जी को भी लगा हुआ है तुम अपना हाथ देखो शायद तुम्हारे हाथ पर भी निशान हो ?" इस बात से थोड़ा बल मिला और फिर बहुरानी ने बीसीजी के टिका से जोड़ने की कोशिश की मगर घर वालों की जिद्द की बहुरानी घर से बाहर पूरा गांव पार करके ब्लाक पर टीकाकरण केन्द्र कैसे जाएगी ? मना कर दिया गया लेकिन हार मान लेना उसके स्वभाव में शामिल नहीं था और वह भी तब जब अपनी ही संतान के जीवन रक्षा की बात हो । उसने अपनी ननद को समझाया और जेठ के बच्चों के साथ जाने की योजना बनाई और रिक्शा से टिकाकरण केन्द्र पहुंच कर कुछ पैसे जमा किया और पर्ची पर नाम दर्ज करवाया । चार पांच बच्चों के बाद नंबर आया बच्चे को बीसीजी का टिका लगाया गया मां को राहत मिली । घर आने के बाद बच्चे को बुखार हो गया और बच्चा रोता रहा दिन रात तड़पता रहा मगर परिवार वालों ने असहयोग आंदोलन छेड़ रखा था । उन्हें नाराजगी थी कि सभी के मना करने के बाद भी टिका लगवाया है तो भुगते । ना कोई बच्चा संभाल रहा था और ना ही कोई सुझाव दे रहा था । तीसरे दिन तो और भी बुरा हाल हो गया जब वो ज़ख्म का शक्ल ले लिया । बहुत कठिन दौर था वो कहने को भरा पूरा परिवार था सिर्फ पति कोर्स पर छः महीने के लिए विदेश गए थें बाकी सभी लोग तो घर में ही थे फ़िर भी वो नितांत अकेली अपने बच्चे को लेकर भुखी प्यासी तीन दिन और तीन रातें बिताई । तब मोबाइल नहीं था जो पति को या मायके वाले को बता सके । लैंडलाइन का फोन था जिस पर हमेशा हंसते हुए यही कहना था कि "मैं बिल्कुल ठीक हूं , मज़े में हूं , सब कुछ यहां बहुत अच्छा है आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए "और अपनी पूरी ताकत लगाकर हंसती थी ताकि पति को यकीन हो जाए की उसकी पत्नी और बच्चें सकुशल हैं और वह अपनी ट्रेनिंग अच्छे से पूरी कर सके । मायके वालों को भी ऐसे ही हंसते हंसते कहना पड़ता था कि "यहां सब कुछ बहुत अच्छा है घर में दादाजी दादी मां , बड़े पापा बड़ी मम्मी और बुआ लोग बहुत प्यार से बच्चे की देखभाल कर रही हैं मुझे तो कुछ करना ही नहीं पड़ता है । यहां बहुत सुख सुविधा में हूं वहां आऊंगी तो इतना आराम नहीं मिल सकेगा इसलिए अभी नहीं आऊंगी ।" कितनी सफाई से झूठ बोला जा रहा था । खैर यह झूठ बोलना जरूरी था मायके वाले को तसल्ली देना ही पड़ता है । बहुत मुश्किल दौर था ऐसे कठिन वक्त पर एक ही सहारा था ईश्वर का बस और थी एक मूर्ति जिससे अपना सभी सुख दुःख साझा करती थी । 

वक्त चाहे जैसा भी हो गुजर ही जाता है । यह वक्त भी गुजर गया और एक दिन बिना दिवाली के ही रंगोली बनाई गई घर को सजाया गया ‌। ढेरों पकवान बनाए गए । विदेश से कोर्स पूरा करके लौटे थे और बच्चे को पहली बार देखा । ढेरों उपहार लाए थे बच्चे की बुआ के लिए कान के बड़े बड़े बूंदें आंखों में काजल लगाने के रस्म अदायगी के लिए । बहुरानी तो बहुत प्रसन्न थी पति को देखकर इसलिए सारा दर्द गम भुला कर पूरी गर्मजोशी से स्वागत की लेकिन घर वालों ने बहुरानी की शिकायत की । बीसीजी के टीका को लेकर । पहले तो बड़े शांति से सभी बड़ों की बात सुनी और उसके बाद रात को डिनर के वक्त ऐलान कर दिया कि "एक सप्ताह बाद मैं अपनी फैमिली लेकर दिल्ली जा रहा हूं वहां सभी सुख सुविधा दे पाऊंगा अपनी पत्नी और बच्चों को । आप सभी ने हमें बहुत प्यार से पाला है अब मेरी बारी है । मुझे अपने बच्चों की समुचित देखभाल और परवरिश के लिए शहर जाना ही होगा ।" 

घर में पिन पटक सन्नाटा छा गया .... सभी हैरान थे और सबसे ज्यादा हैरान तो बहुरानी थी क्योंकि उसने तो कुछ भी नहीं कहा था अपने पति से । घर में जो कुछ भी क्लेश हुआ उसका जिक्र नहीं किया था । उसने सोचा था पति भी इसी परिवार के हिस्सा हैं तो उनकी सोच समझ और मानसिकता भी ऐसी ही होगी । कुछ भी कहने का मतलब हुआ रिश्ते खराब करना जो वो बिल्कुल नहीं चाहती थी । उसने तय कर लिया था कि अपने बच्चे के लिए जंग लड़ेगी अकेली ही और पंद्रह साल तक का सभी टीका दिलवाएगी । अकेली ही जाएगी मगर अपने संतान के लिए सब कुछ करेगी । 

25 साल बाद आज फिर वैसा ही टीका कोविड 19 से बचाव के लिए वैक्सीन लगाया गया । दो दिन दो रात बच्चा दर्द में तड़पता रहा मगर आज उसके पापा भी हैं और सारी रात जाग कर कभी पट्टी दे रहे हैं कभी सर दबा रहे हैं और कभी पीठ दबा रहे हैं । पास में बैठी उनकी पत्नी बार बार बोल रही है कि "अब आप सो जाइए आराम कीजिए मैं हूं न ?" तब पति ने बड़े शांति से कहा "उस दिन बीसीजी के टीका में जो कुछ तुमने दर्द तकलीफ़ और मानसिक यंत्रणाओं को झेला था वो तो मैं बांट नहीं सका लेकिन आज तुम्हें और अपने बच्चें को आराम पहुंचा कर सुख देकर प्रायश्चित करना चाहता हूं । उस वक्त कोर्स पर रहने की मजबूरी थी लेकिन आज मैं स्वतंत्र हूं इसलिए मुझे सेवा करने दो तुम आराम करो । तुमने बड़ी लम्बी लड़ाई लड़ी है बच्चों के लालन-पालन और समुचित देखभाल करने में । तुम एक योद्धा हो जो जीत हासिल करके आई हो अब तुम्हें थोड़े आराम की जरूरत है ।" यही बस यही वो सबसे खूबसूरत वजह थी जो बिल्कुल ही विपरीत माहौल में खुशी खुशी वो जीवन बसर करती रही थी । उसे यकीन था उसके पति स्वंय समझ जाएंगे कि उनकी पत्नी सही आवाज उठाई थी या गलत । अपनी जुबान से कुछ भी नहीं बोलना पड़ा और उसके पति ने न सिर्फ समझा बल्कि उसे सराहा और सम्मान किया । इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि पति उसे सही समझें सम्मान करें और बदले में ढेर सारा प्यार दें .... । परेशानियों के वक्त भी दोनों पति-पत्नी मुस्कुरा रहें हैं राहत महसूस कर रहे हैं बच्चे को भी आराम मिला है वो गहरी नींद में सो रहा है छः फीट का बच्चा सोया हुआ है मगर मां को नन्हा-सा बच्चा याद आ रहा है ....।

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