"खुशी की चाहत में"(कहानी)

गरीब धनपतराय अपने झोपड़ी में बैठे कुछ सोच रहे हैं।

उनकी पत्नी विमला पास में चावल साफ कर रही है।

बारिश को हुये तीन दिन बीत गए हैं पर आज भी बादल आसमान को ढक रहे हैं, धनपतराय को कोई काम नहीं मिला जिसके चलते बच्चे भूखे हैं।

कावेरी उन की यह हालत देखती है और चावल बनाने लगती है।चावल बनाकर वह सबको खिला देती है और फिर काम में जुट जाती है।

कावेरी धनपतराय की बड़ी बेटी है, घर में वह सामान्य बोलचाल तथा मेहनती लड़की है।

लगातार आठ दिनों की बारिश से घर की हालत बिगड़ती जा रही थी, कावेरी को अत्यधिक निराशाजनक स्थिति की सूचना मिल चुकी थी,उसे जिन्दगी का करीब से एहसास हो चुका था।

आज कई दिनों बाद वह काम की तलाश में निकली थी क्योंकि कावेरी समझ चुकी थी कि घर पर रहकर घर की स्थिति में कोई सुधार नहीं होने वाला।क ई दिन भटकने के बाद पास के ही विद्यालय में ही प्राईवेट में जाँब मिल गई और वह वहाँ तीन हजार रुपये मासिक में कार्य करने लगी।

यह सूचना उसने अपनी परिवार में देदी।

तो पिता कहने लगे-"तु नौकरी करन जाहे।"

कावेरी ने संक्षिप्त"हाँ"में उत्तर दिया।

पिता -"पर बिटिया तोहे नौकरी करन कीका जरूरत, ई गाँव वाले का कहेंगे।"

कावेरी ने समझाते हुए कहा कि" लोगोंका काम है कहना ,वो कुछ न कुछ कहेंगे, रही बात जरूरत की तो आप अपने आप से पूछिये।"

पिता-"लेकिन--------"

तभी पीछे से दोनों बच्चे संजू और सोनाली बोल पड़े-"लेकिन क्या बाबूजी दीदी के काम करने से हमें ही लाभ होगा।"

धनपतराय चुप हो गए क्योंकि अब उनकी दाल नहीं गलने वाली।

××××××××××××××÷××××××÷कावेरी को आज वेतन मिला है वह उसे अपनी माँ को देदेती है।

माँ उस वेतन को अपने बच्चों की पढ़ाई में ही खर्च करती है।

संजू कक्षा "वारहवी"व  सोनाली कक्षा "दस" में पढ़ती है।दोनों ही बच्चे अपनी कक्षा के मेधावी छात्र/छात्रा हैं परन्तु आये दिन रूपरेखा की समस्या उनके आड़े आती रहती है।

उधर जब कावेरी पढ़ाने जाती है तो लोग तरह-तरह की बातें करते हैं।

पहला ग्रामीण-अब धनपत की बेटियाँ घर धन से भर दें।

दूसरा-अजी नायै ,होई सकत है दाल में कुछ काला होये।

परन्तु कावेरी ने इन आलोचनाओं पर कान नहीं धरे।

धीरे-धीरे तीन महीने बीत गए एक दिन सोनाली ने सूट व कुछ किताबों के लिए कहा तथा संजू ने भी एक लिस्ट देते हुए कहा-"दीदी यह सामान लेते आना"।

कावेरी-"ठीक है यह सब मैं लेती आऊँगी तुम दोनों पढ़ाई पर ध्यान देना।"यह कहकर वह घर से निकल जाती है तथा दोनों बच्चे भी अपने कालेज निकल जाते हैं।

धनपतराय भी काम पर जाते हैं कि कोई व्यक्ति टोकते हुए कहता है"अरे धनपत बेटी को सकूल और बेटे को कालेज भेज दे तो काहे मेहनत करत है।"

धनपतराय जबाब देते हैं कि मेहनत तो हर इक आदमी को करत रहन चहिये बिना मेहनत आदमी जानवर की तरह होत है भईया"यह कहकर वह खेत पर चला जाता है।

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शहर के प्रसिद्ध जाने-माने सेठ प्रेमानंद जी के दो बच्चे हैं।एक लड़का दूसरी लड़की दोनों का विवाह तय हो गया था, पैसों की कोई कमी नहीं थी,खर्च के लिए सोचना समझना नहीं पड़ता।बेटी को मायके आने-जाने एवं रूकने की पूरी आजादी थी।

बेटा अरुण कम्प्यूटर की फर्स्ट क्लास डिग्री प्राप्त कर घर के ही किसी कोनें में कम्प्यूटर  चलाता है,पत्नी करूणा पेशे से डॉक्टर एवं सुलझी हुई महिला है। उनकी एक बच्ची है जिसका लालन -पालन नानी के हाथों हो रहाहै।शादी के कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा, परन्तु जैसे-जैसे दिन बढ़ते जा रहे थे, उन दोनों के रिश्तों की खटास बढ़ती जा रही थी।

एक बार अरूण अपनी पत्नी को लेकर मनाली गया।वे दोनों होटल के एक कमरे में रुके, दूसरे दिन अरूण करुणा को शाँपिग को कहकर गायब हो गया।करुणा उसे ढूँढते हुए दोबारा कमरें में पहुँची तो उसके  साथ अन्जान लड़की को देखकर हैरान रह गई, उस दिन उस लड़की को लेकर उन दोनों में झगड़ा हुआ। अगले दिन वो दोनों बिना घूमें ही लौट आये।अरुण अपने परिवार से अलग फ्लैट में रहने लगा।फ्लैट में भी आये दिन दोनों के बीच झगड़ा होता रहते हैं।

"करूणा मेरी शर्ट कहाँ है"।अरुण ने आवाज लगाई। उस समय करूणा खाना बना रही थी किचन से उसने चिल्ला कर कहा-"अरूण ने सेफ में देखी पर उसे शर्ट कहीं नहीं मिली"।

अरूण को गुस्सा आ गया उसने आव देखा न ताव चार पाँच  थप्पड़ करुणा के लगा दिये"।

करूणा के आँखों में आँसू आ गये।"मेरी हर चीज समय पर व एक स्थान पर मिलनी चाहिए वरना क्या होगा मैं नहीं जानता।"

यह कहकर वह आँफिस चला गया।अरूणा आहत हो वही खड़ी की खड़ी रह गई।

थोड़ी देर बाद वह भी। हास्पिटल चली जाती है।शाम को वापस आकर भी वह खाना नहीं बनाती दोनों भूखे पेट सो जाते हैं।

सुबह उठकर  अरूण चाय बनाता है और मुस्कुराते हुए करूणा को देता है पर वह चाय नहीं पीती है और न ही खाना बनाती हैं।दोनों अपने-अपने काम पर चले जाते हैं।शाम को जब अरूण घर पर आता है तो वह  खाना ढूँढता है पर उसे कुछ नहीं मिलता।वह करूणा के पास जाकर कहता है कि  ओह ,करूणा कब तक चलेगा यह सब

तुमनें अब तक खाना नहीं बनाया, खाना न खाने से तुम बीमार हो जाओगी, फिर तुम्हारा इलाज करवाना पड़ेगा इसलिए गुस्सा छोड़कर हँसो।"अरूणा कुछ नहीं बोली।वक्त गुजरने के साथ व्यवहार में थोड़ी नम्रता आ गई, परन्तु मन में गाँठ पढ़ चुकी थी।

बने रहे "खुशी की चाहत में "का अगला अंक मेरी लेखनी 

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