"जिंदगी से एक मुलाकात"(कहानी)

 जिंदगी से एक मुलाकात


"दीपा जल्दी से रुमाल दे यार,,,,,,ऐसे ही लेट हो रहा हूँ। डॉ से भी मिलना है " संदीप ने तेज आवाज में कहा ।। "आई,,,,,,,,,,,,"  कहती हुई मैं  जब तक  प्रेस  से रुमाल सूखा कर ले कर आई ।तब तक संदीप गाड़ी लेकर निकल गए ।दुनियां इधर की उधर हो जाये पर ये  जनाब एक मिनिट लेट नही हो सकते  । मैं भी क्या करूं चार दिनों  से लगातार बारिश हो रही है , कपड़े सूख ही नहीं रहे हैं ।  कई दिनों से धूप  का नामोनिशान ही नहीं है। मुझे संदीप पर बहुत गुस्सा आरहा था  ।  वैसे ही  आज  मूड बहुत खराब था कुछ भी अच्छा नही लग रहा था । मन बहुत भारी हो रहा  था ।मैं कुछ समय के लिए  सब से दूर एकांत में कुछ पल  खुद के साथ रहना चाहती थी । सब काम यूँही  अधूरा छोड़ कर  मैं  छत पर चली गई ।  हल्की बूंदाबांदी हो रही थी पर उसकी परवाह किये बिना मैं छत पर जाकर काफी समय तक आँखें बंद कर  खड़ी रही । मेरे अंदर के तूफान  से आहत मेरा अशांत  मन शान्त होने का नाम ही नही ले रहा था।

            कल शाम जब से बिमला दीदी  से मिली  । मन किसी काम में नहीं लग रहा था। रात भर  उनका उदास  बुझा- बुझा चेहरा बार -बार आँखों के सामने तैरता  रहा । जीजा जी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे । उनकी बीमारी को लेकर वो टूट सी गयी थी। डॉ ने बताया उनकी दोनों किडनियाँ खराब हो गयी हैं । काफी दिनों तक वो आई .सी. यू में रहे। अब उनका डायलिसिस हो रहा है। काँपते होठों से अपनी आप बीती बताते हुए उन्होंने कहा '' हमारे बस में कुछ भी नहीं है दीपा , हम सब तो भगवान के  हाथ की कठपुतली हैं।कब किसे कैसे नचाना है ये तो उन्ही पर निर्भर है।  सोचा था बेटे की शादी कर हम अपनी अंतिम जिम्मेदारी से भी मुक्त हो जायेंगें और फिर  हम और तुम्हारे जीजा अपने  हर वो अरमान पुरे करेंगें जो बरसों से जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए थे पर यहां तो जिंदगी घात लगाए बैठी थी। अरमान पूरी करना तो दूर की बात है, ऐसा लग रहा है  मानो  अब तो साँस लेना भी मुश्किल हो रहा है । सब कुछ एक जगह पर ठहर सा गया है । कांटों के चुभने का अहसास भी थम सा गया है। अब  तो बस पूरी जिंदगी इसी दर्द के साथ जीना है ।  हमनें तो अपनी सारी इकच्छाओं' को सारी भावनाओं को हवन कुंड ने स्वाहा  कर दिया है  ।  अब तो बस  किसी तरह घिसट रही है जिंदगी " ।  कहते हुए उनकी आँखें भर आई थी। उनके  कहे  एक एक  शब्द  जिंदगी की कड़वी सच्चाई  बयाँ कर रहे थे । उनकी कहानी के दर्पण में  जिंदगी की तस्वीर देख कर  बहुत डर गयी थी मैं ।


  इंसान के जीवन में छोटी बड़ी कई ऐसी इच्छाएं  होती हैं जो जिम्मेदारियों  के बोझ तले दम तोड़ देती  हैं, और हम मन को यह कह कर ढाढस  दिलाते रहते  हैं "कोई बात नहीं फिर कभी,,,,,,,,,,"।  यूँ देखा जाए  तो जीवन और समस्याओं का  चोली दमन का साथ है । जब तक साँसें है तो समस्याएँ भी हैं, पर जब  कभी समस्यओं का कद इंसान के कद से बड़ा हो जाये । तो  समस्याओं का बोझ जीवन पर इस कदर  भारी पड़ने लगता है कि ऐसे में उद्विग्न मन सब कुछ छोड़  छाड़ कर भाग जाने को व्याकुल हो जाता है पर हम जीवन की वास्तविकताओं से भाग भी नही सकते । बारिश से भीग रहा तन और जिंदगी की सच्चाई से रूबरू होता   एक थका और बुझा  हुआ मन  लिए मैं घंटों  छत पर खड़ी  रही । कभी  इसी प्रकृति की मोहक छटा देख मैं  बावरी हो जाया करती थी पर आज वह  भी मेरे दिल को बहलाने में असमर्थ थी।  मन  निराशा के सागर में गोते लगा रहा  था। आँखे बंद कर  मैं  खुद को शांत करने का प्रयास कर  रही थी पर आज दिल मेरे  काबू में नहीं था। दीदी के आँसुओं ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया था। कितनी चंचल, कितनी जिंदादिल हुआ करती थी दीदी। हर पल हंसती खिलखिलाती जीवन से भरपूर और आज ,,,,,,,,,, उनका उदास चेहरा देख ,मैं  मन ही मन जिंदगी को कोसने लगी । मन ही मन अनगिनित गालियों से उसका अभिषेक कर डाला। तभी  भीनी भीनी खुशबू लिए  एक ठंडी हवा का झोंका आया और धीरे से मेरे कानों में  फुस फुसा कर बोला ,,,,,,,,,

'' दीपा तुम बहुत खूबसूरत हो '' । मैंने   झट पलट कर देखा तो सामने जिंदगी खड़ी मुस्कुरा रही  थी। उसे देख मेरी आंखे गुस्से से जलने लगी ,अपनी लाल -लाल आँखों से उसे घूरते हुए मैंने नजरें फेर ली।

''क्यों नाराज हो मुझसे  ?''   मुस्कुराते हुए जिंदगी बोली। .

''हाँ हूँ,,,,,,  मैं बहुत नाराज हूँ तुमसे , तुम  भी क्या चीज हो , किसी की खुशी तुम्हें बर्दास्त क्यों नही होती है । क्यों  परेशान कर रखा है सबों को , । " खीजते हुआ मैंने कहा।

मेरे कंधे पर हाथ रख कर हल्के से दबाते हुए जिंदगी बोली ''  इतनी नफरत ,,,,,,अरे एक बार ,,,,बस एक बार प्यार से नजर उठा कर मेरी तरफ  देखो तो सही , मैं भी बहुत हसीन हूँ। "

मैं तो यूँहीं  चिढ़ी  बैठी थी और चिढ़ कर बोली ''  तुम और हसीन ,,, ,,,, ।अपने मुँह मियाँ मिठू मत बनों , किस बात पर तुम  इतना इतराती हो , किस बात का घमंड है तुम्हें । अरे ,,,मुझ से पूछो  तुम क्या हो ?  , छोटी छोटी खुशियों के लिए जब इंसान अपनी बाहें फैलता है अगले ही पल तुम उस पर  दुःख का पहाड़ गिरा देती हो । खिले मासूम चेहरों पर गम की स्याही पोत कर खुद को बहुत महान समझती हो  ।  तुम्हें  क्यों नहीं  इस जुर्म की सजा मिलती है खुदा से।''


जिंदगी मुस्कुरा कर बोली  ''  ये सजा ही तो है कि तुम मुझसे इतनी नफरत करती हो , तुम्हें मेरे प्यार का अहसास तक नहीं है। ''

'' कैसे करूँ अहसास,,,,,,,, कर्ज ,मर्ज , फर्ज की सीढ़ियां चढ़ते -चढ़ते थक जाता है इंसान और तुम  जीवन के पथरीले राहों  पर कहीं खाई ,कहीं पर्वत, कहीं पानी ,कही  आग लगा कर  उसके कठिन  रास्तों को  और  कठिन  बना देती हो  ।"  लगभग खीजते हुए मैंने कहा ।

" दोस्त तुम जिस रास्ते की बात कर रही  हो, वही रास्ते ही  तो तुम्हारी पहचान है , तुम जिस कठिनाइयों  की बात कर रही  हो, वही  तो तुम्हारी  काबलियत ,तुम्हारे जोश , तुम्हारे  जूनून की पहचान है। यदि ये रास्ते कठिन न होते तो  तुम्हारे जीवन की किताब का हर पन्ना कोरा रहता। ''  जिंदगी मुस्कुराते हुए बोली।

'' बंद करो अपनी फिलॉसफी , इस बेरंग जिंदगी में  ,न कोई उमंग है ,न कोई ख़ुशी , बस एक छटपटाहट ही शेष  रह गयी है । तुमसे भली तो मौत है , जिसके आगोश में शांति ही शांति है।'' मैंने तड़प कर कहा ।

'' मौत ,,,,,,,,,'' खिलखिला कर हंस पड़ी जिंदगी ,बोली ''  जीवन मे रहते हुए विरह वेदना के अहसास से तुम इतनी व्याकुल हो कि तुम्हें जिंदगी से नफरत हो जाती है पर पगली,,,,,मौत की सच्चाई ये है कि वो तुमसे साँसों के साथ साथ तुम्हारे हर अहसास को भी छीन लेती है और तुम्हें  शून्य में परिवर्तित कर देती है। दीपा तुमने जीवन को समझा ही नही ।  सुखदुःख , प्यार ,अपनापन , नफरत ,जलन , इर्ष्या द्वेष  गुस्सा  ,आभार  ,जिम्मेदारी  ,लापरवाही  ,सफलता,  असफलता ये सभी तो जीवन रूपी सर्कस के जोकर है ।। ये  सब अलग अलग रंगों में  अपने  करतब दिखाने आते हैं और चले जातें हैं । तुम्हें कौन  सा खेल पसंद है । तुम जिसका  खेल देखना पसंद करती हो । वही तुम्हें  अपने गिरफ्त में ले लेता है ,उसी के इर्द गिर्द जीवन का घटना क्रम चलता है । यही तो  है लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन। तुम अपनी पसंद बदलो ,अपना नजरिया बदलो , फिर देखो कैसे सब कुछ बदल जायेगा और  तुम्हें मुझसे ही नही पूरी कायनात से प्यार हो जायेगा क्योकि मैं भी तुमसे बेतहां मोहब्बत करती हूँ । तभी तो खुदा से तेरे लिए साँसे माँग लाती हूँ।


मेरा गुस्सा उसकी इन दलीलों से शांत नहीं हुआ। गुस्से में चीखते हुए मै बोली ''क्यों मांग लाती हो साँसें ,क्या करूं मैं इन  बेचैन साँसों का। उम्र दर उम्र  जिंदगी के रास्ते पर बढ़ते हुए हम कई बार गिरे , कई बार फिसले।   किश्तों  में बटी इस जिंदगी में हर पड़ाव पर एक दरवाजा खुलता है और हमारे फर्ज का ,हमारी जिम्मेदारियों का एक बड़ा सा  पर्चा  हमारे हाथों में थमा दिया जाता है और हम कर्मठ सिपाही की तरह उस रास्ते पर चल पड़ते है क्योंकि हमारे पास और  कोई विकल्प  होता ही नही है। तमाम जिम्मेदारियाँ निभाते निभाते मन के एक कोने में ये उमंग रहती है कि अगला पड़ाव हमारे खुशियों का होगा ,,,,,बंद दरवाजे के पीछे जिंदगी बाहें फैलाये हमारा इंतजार कर रही होगी पर जब हम तमाम आशाओं को समेट अगले पड़ाव पर पहुँचते है और दरवाजा खुलता है तो कुछ नई जिम्मेदारियों के बोझ तले दवा एक और पर्चा हमें थमा दिया जाता है।

यह क्रम साल दर साल चलता रहता है। हम किसी तरह मन को समझाते हैं '' कोई बात नहीं , इन सब से निपटने के बाद तो जिंदगी हमारी है और वक्त भी हमारा है। "  पर जब चौथे पड़ाव पर अगला  दरवाजा खुलता है जहाँ अगला पर्चा बीमारी का खौफ लिए हमारा इंतजार कर रहा  होता है।  देख पाँव के नीचे से  जमीन सरक जाती है । शीतल छाँव में ठहरने  की आस में व्याकुल मन दर्द और पीड़ा के दलदल में फँस कर  तड़प उठता है और उससे कभी नहीं उभर पाता है। ये सब देख कर भी तुम खुद को हसीन कहती हो,,,, ''    कहते हुए मैं फ़फक- फफक कर रो पड़ी....

मुझे प्यार से आगोश में लेते हुए जिंदगी बोली '' मैं  तो तुम्हारी परछाई बन कर तुम्हारे साथ रहती हूँ । हमारी तुम्हारी डोर तो साँसों से बंधी है। तुम्हारे बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। दीपा जन्म, मृत्यु, जरा ,व्याधी तो सृस्टि का नियम है ।उस पर मेरा कोई बस नही है ।मैं भी तुम्हारी तरह सृस्टि का हिस्सा हूँ पर  तुम किस वक्त का इंतजार कर रही हो। वक्त कभी किसी का नहीं हुआ। न किसी के लिए ठहरा ,न किसी के लिए चला। उसने पूरी कायनात को अपने गिरफ्त में कर रखा है। पूरी सृष्टि को नियमबद्ध कर रखा है।तभी तो यह धरती जीवंत है । ऎसा नहीं है कि तुम्हें  जीवन में कुछ नहीं मिला पर गिनती तूम सदा उन्ही चीजों की करते रहे जो तुम्हे हासिल न हो सका।  ''


मेरे  आँखों से बहते आँसुओं को  पोछते हुए जिंदगी ,बड़े प्यार से मेरे ठुडी पर हाथ रख कर मेरे चेहरे को ऊपर उठाते हुए बोली ''जरा गौर से  आकाश की तरफ देखो उसकी विशालता को महसूस करो ,गैलन भर पानी का बोझ लिए  बादल एक जगह से दूसरे जगह जा कर  पानी बरसाता है किसके लिए  ?  तुम्हारे लिए ,,,,,ताकि तुम्हें भोजन मिल सके। कभी बादल ने कोई शिकायत की, या तुमसे मेहनताना मांगा, नहीं ना।  सूरज धरती को रौशन कर जीवन प्रदान करने के लिए   सारे दिन इतनी दूरियाँ तय करता है। किसके लिए,,,,,, ? तुम्हारे लिए,,,,,,ताकि तुम्हें जीवन मिल सके । हवाएँ दिन रात बहती हैं किसके लिये,,,,,,, ?  तुम्हारे लिए ,,,,,, ताकि तुम्हें प्राण वायु मिल सके। धरती अपना सीना चीर कर अनाज उगाती है किसके लिए,,,,,, ? तुम्हारे लिए ,,,,ताकि तुम्हें भोजन मिल सके। रात के अँधेरे को कम कर धरती को शीतलता प्रदान करने चाँद रोज आता है किसके लिए ,,,,?  तुम्हारे लिए,,,,,,। पेड़ फलों से ,पौधे फूलों से लद जाते है किसके लिए ,,,,,? तुम्हारे लिए,,,,,,। नदी ,तालाब, झरने  जल से लबालब भरे रहते  है किसके लिए,,,,, ? तुम्हारे लिए,,,,,,,ताकि तुम प्यासे न रह जाओ और तुम कहती हो  कि तुम बेजार हो गयी हो। प्रकृति के निःस्वार्थ प्रेम का , उसके मनुहार का ,उसके समर्पण का ये सिला दिया है तुमने ।जिस पेड़ के पत्ते भी उसका साथ छोड़ देते हैं। प्रकृति उसका भी ओस की बूंदों से  मोतियों सा श्रृंगार करती  है। क्योंकि  वह हमसे बेइन्तहां प्यार करती है और प्यार देने का नाम है ,पाने का नहीं  ,यही कुदरत की विशेषता है । पाना तो आप का मुकद्दर है।  " कह कर जिंदगी गंभीर हो गयी। मै  निःशब्द  ,अपलक उसे निहारती रह गयी। उसके कहे एक एक  शब्द में गहरी सच्चाई थी । हमें  अपनी हर छोटी बड़ी जिम्मेदारियाँ बोझ लगती है  पर प्रकृति अपनी जिम्मेदारियों को बोझ नहीं प्यार समझ कर निभाती है तभी तो पूजनीय है।जिंदगी की बातें खत्म नही हुई थी वह भी भावुक हो गयी थी बोली " तुमने कभी प्रकीर्ति की विरह वेदना को महसूस किया है । कभी रात को दिन से मिलते देखा है । कभी सूरज चाँद को मिलते देखा है।कभी धरती आकाश का मिलन होते देखा है । छितिज पर उसके मिलने का अहसास एक मृगमारिचिका है, धोखा है।इस सृष्टि के रचयिता  भगवान राम  भगवान कृष्ण का पूरा जीवन ही विरह की कलम से लिखा गया है । ये धरती  इंसान का कर्म छेत्र है । मिलन तो माया का फैलाया जाल है। जिसमे उलझ कर इंसान  जीवन के असली सत्य को भूल जाते है । माँ के गर्भ से जब तुमने जीवन मे पहला कदम रखा कुदरत ने माँ की छाती दूध से भर दी ।  पल भर के लिए भी उसने तुम्हें असहाय नही छोड़ा और तुम उनके दिए अनमोल सौगात को कोस रही हो ,,,,, " कहते हुए जिंदगी भावुक हो गयी । ओह,,,,,, जिंदगी ने चंद शब्दों में समूचे कायनात को समेट लिया था । मै भी भावुक हो गयी थी । दौड़ कर जिंदगी के गले से लिपट गयी ।

'' तुम सच मे बहुत अच्छी हो ,मैं भी तुमसे प्यार करना चाहती हूँ '' भरे गले से मैं बोली ।

''तो करो न ,किसने रोका है। '' बांहों का घेरा कसते हुए  जिंदगी बोली ।

'' हमारी  नासमझी ने , हमारी अपनी उलझनों ने,, जो हम खुद  पैदा करते हैं । हम जानते हैं कि जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है सब कुछ  परिवर्तन शील है। फिर भी हम मन के हाथों मजबूर हो  वक्त को मुठ्ठी में पकड़ना चाहतें है । ''  कहते हुए मेरी आँखे भर आईं ।

'' ,जिस समस्या को तुम सुलझा सकती हो वो सुलझा लेना ।उसकी चिंता क्यों करती हो और जिस समस्या को तुम सुलझा नही सकती  ,वो तुम्हारे हाथ मे ही नही है  तो फिर उसकी चिंता क्यों करती हो । ये सब विधाता का खेल है । उसने तुम्हें चंद साँसों के साथ इस दुनियाँ में भेजा है । यहां आकर तुम  ये भूल गयी हो कि तुम इस दुनियाँ में अकेले आई हो अकेले ही जाना है । जन्म के समय तुम्हारे हाथ खाली थे और परणोपर्यंत भी तुम्हारे हाथ खाली रहेंगे।यहाँ से एक तिनका भी ले जाने की इजाजत नही है । फिर दुख सुख की गठरी का बोझ उठाये क्यों घूम रही हो।  तुम्हें एक राज की बात बताऊँ  " मुस्कुरा कर  मेरे बालों को सहलाते  हुए जिंदगी बोली '' जीवन के इन्हीं  उबड़ खाबड़ रास्तों  से कुछ पल निकाल कर जी लो अपनी जिंदगी ,तुम्हारी ख़ुशी ,तुम्हारी चाहत, तुम्हारे दिल की हर वो आरजू ,जिन्हें तुमने आने वाले वक्त के लिए बचा रखा है उसे बेखौफ पूरी करो ।  कभी सही वक्त का इंतजार मत करना  ।  तुम नहीं जानती  हो  वक्त के गर्भ में क्या छुपा है। अगले दरवाजे पर यदि मौत भी तुम्हारा  इंतजार कर रही हो  तो तुम्हें जरा भी  अफ़सोस नहीं होगा।  यही जीवन जीने की कला है । खुद को  आत्मा की गहराई में डूब कर  प्यार करो। तुम्हारे अंतरतम में उठते हजारों सवाल  ,,,,कौन  हूँ मैं ,,,,,,?  यहाँ क्यों आया हूँ  ,,,,,,,?   मेरी मंजिल क्या है ,,,,,,,,,,? , इन सब का जबाब वहीं तुम्हारी आत्मा में बैठा पूरी सृष्टि  का रचियता तुम्हें  तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर देगा ,,,,,, "तुम मेरा ही अंश हो । तुम्हें धरती पर प्रकीर्ति की देख रेख में मैंने ही भेजा है । तुम्हारी मंजिलें तुम्हारे ख्वाब है ।"  दीपा तुम  उसे  महसूस तो करो ,वह पल पल तुम्हारे साथ है ।तुम्हारी होठों पर थिरकती मुस्कान में है। वह तुम्हारे आँखों की नमी में है । वो हर कठिन से कठिन वक्त में तुम्हारे काँपते हाथों को थाम कर  कहेगा " मत डरो मैं  हमेशा तुम्हारे साथ  हूँ  , मुझ पर विश्वास करो ,,,,,,,,,,, " श्रद्धा से नतमस्तक होते हुए , जिंदगी मुस्कुरा कर बोली..।

आसमान पर छाए काले बादल छंट गए थे । सामने खड़ी जिंदगी  दिव्य ज्योति से नहाई  सी प्रतीत हो रही थी ।

      .मेरी आँखे खुली की खुली रह गयी। जिंदगी की इस खूब सुरती से मैं कितनी अपरचित थी। मैंने जिंदगी को इतनी गहराई से  कभी समझा ही नही था ।मेरी  सारी  शिकायतें हवा हो गयी ,मन पर अब कोई बोझ नहीं था। क्योकि मैं जीवन के रहस्य को समझ गयी थी ।मैं समझ गयी थी , ये जीवन अनमोल है  जीवन है तो सिर्फ इसी पल है। अतीत का बोझ हमारे बर्तमान को भी नष्ट कर देता है और भविष्य की चिंता हमे वर्तमान के सुख से वंचित कर देती है ।  सच्चाई से रूबरू कराती जिंदगी का प्यार हमें  गुदगुदा गया । 

वारिश की बूंदों से  नहाए पेड़ पौधे झूम झूम अपनी खुशी जाहिर कर रहे थे ।सूरज भी बादलों के ओट से झाँकता अपनी शीतल किरणों से धरती को आह्लादित कर रहा था । ठंडी ठंडी शीतल बयार मेरे अंगों से लिपट कर  अपने प्यार का अहसास दिला रही थी। आज प्रकीर्ति नही मैं उसे  अपने  आगोश में लेने को बाहें फैलाये खड़ी थी। आज मेरा रोम रोम उसकी तपस्या, उसके मनुहार के आगे नतमस्तक था  ।

                         रात कभी सुबह का इंतजार नही करती है ।पतझर कभी बसंत का इंतजार नही करता है।खुशबू कभी मौसम का इंतजार नही करती है। जिंदगी कभी वक्त का इंतजार नही करती है।इसलिए जीवन की राहों में  जो भी खुशी मिले उस का आंनद लेते चलो।यही जिंदगी का संदेश है।

                                                                                                                                                                                                                                  

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)