"ससुर जी"(व्यंग्यात्मक लेख)

ससुर जी

ससुर शब्द सुनने में ही एक अजीब, बेकार शब्द प्रतीत होता है ।पर यही बेकाबू शब्द ससुराल पूजनीय हैं।यह ससुर जब घर में प्रवेश करते हैं तो  प्रधानाचार्य जी से भी बड़ा उनका पद होता है।प्रधानाचार्य जी अपने सीट पर बैठने की इजाजत दे देते हैं, पर ससुर जी के आने पर अपनी सीट पर ही नहीं बैठना है, अजी सम्मान करना है न ।

इज्ज़त के साथ साथ ससुर जी को एक और ख्याति प्राप्त है ।जीहाँ उन्हें घर के सभी सदस्य वैसे ही समझते हैं, जैसे रद्दी कापी, अब रद्दी पर सभी बिषयों का काम किया जाता है उसी प्रकार ससुर जी भी घर का सारा काम करें और जिसकी इच्छा हो उन्हें बुरा-भला सुना जाये,किसी की नजरों में उनकी इज्ज़त केवल कोल्हू के बैल के समान है।

अपने परिवार के लिए जो दिन-रात खटता रहता है।जिसके रहते परिवार अनेक प्रकार की समस्याओं से मुक्त रहता है, परिवार उसको निर्जीव प्राणी समझ लेता है।

दोस्तों दुनिया के समस्त ससुर पिता के समान ही होते हैं, वे कभी भी अपने बेटों को, बहुओं को ,पोते को अपनी परेशानी नहीं बताते।यह वही प्राणी है, जो दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह चलता रहता है और शाम को अपने परिवार को ताजा खाना खिलाने हेतु, स्वयं बासी खाना खा लेता क्योंकि वह जानता है कि पैसा कितनी मेहनत से मिलता है।खून पसीना एक करके ही संसार का सुख क्या दो वक्त की रोटी हासिल होती है।यह ससुर जी हैं, अपने पोते-पोती से बड़ा ही प्रेम करें।एक बार कह देने भर से ही जूते, चप्पल, कपड़ें, मिठाई सब लाकर रख देते हैं।यह प्राणी खुद सालों बीमार रहेगा अपना ईलाज नहीं करवायेगा, पर घर के सभी सद्स्यों के बीमार होने पर पैसों का इंतजाम जरूर करेगा। जबतक आप इसे लेकर नहीं जायेंगे,"मैं ठीक हूँ, अरे!अपना काम करों।शब्द सुनने को मिलेंगे। घर में सभी आराम करेंगे पर यह नहीं।जब यह सोते हैं तो तो सैकडों  चिंताएं लेकर, उठते हैं तो उन चिंताओं को समेटने के लिए।यूँ तो यह घर में कोहराम मचाये रहते हैं, पर कोई जरा भी उँचा बोल जाये इनसे तो शान्त हो जाते हैं।यह केवल पिता ही नहीं पिता ,प्रधानाचार्य, और अन्य पदों से बढ़कर हैंऔर इसलिए यह पूजनीय हैं।आज के ससुर जी में इतना बदलाव आया है कि अब घर की बहुओं से यह आराम से बात कर लेते हैं और उनका हाल-चाल जानने के लिए दूसरों का सहारा नहीं लेते।

अंत में इतना कहूँगी कि दुनिया में जितनी आवश्यकता पिता की है उतनी ही ससुर जी की।

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