"गुमनाम शायर"(कविता)



मैं एक गुमनाम शायर हूँ।

बोल नहीं पाता, क्यों कि

बचपन से कायर हूँ।।

मैं एक गुमनाम शायर हूँ।।


मुझे एक लड़की बहुत पसंद थी।

मेरे दिल में वो नजरबंद थी।।

पर, दिल ही दिल मे घुट कर रह गया।

क्यों कि बचपन से कायर हूँ।।

मैं एक गुमनाम शायर हूँ।।


एक दिन ऐसा आया था, 

उमड़ पड़े थे जज्बात।

और मैंने कहा दी अपने दिल की बात।।

पर डर के मारे ये भी कह दिया,

मैं सबसे बड़ा लायर हूँ।

क्या करता, मैं तो बचपन से कायर हूँ।।

मैं एक गुमनाम शायर हूँ।।


पर ये मनु बिहारी, 

नहीं चुकेगा अबकी बारी।

दिल मे अब भी जलती है,

धीमी धीमी चिनगारी।।

और वो जहाँ भी रूबरू हो तो,

ऐसा लगता है To Much On The Fire हूँ।।

मैं एक गुमनाम शायर हूँ।।

मैं एक गुमनाम शायर हूँ।।

Written by #शायर_मनु_बिहारी

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)