शायरी
क्या कहे हम कि कहने को कुछ बाक़ी ना रहा
घाव पर घाव मिल रहे सहने को कुछ बाक़ी ना रहा
हाथ पकड़ लो ले चलो अपने दिल के किसी कोने में
लग रहा इस जहां में रहने को कुछ बाक़ी ना रहा
अजब सी आबोहवा है यहां अजब ये घुटन सी है
सांसे है सुलगती हुई सीने में अलग चुभन सी है
बह रही रक्त धारा बहने को और कुछ बाक़ी ना रहा
क्या कहे हम कि कहने को कुछ बाक़ी ना रहा।
Written by #अविनाशरौनियार
wow... heart touching...
ReplyDeleteधमाल मचा दिहाल गुरु
ReplyDeleteBahut mat bhaiya ji
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