"खाने की चाहत"(कविता)
छोटी सी उम्र है चार पैर है।
ना है अंधेरों से डर
ना है गर्मी से डर
ना है वर्षा से डर
ना है ठंड से डर
है बस खाने की चाहत।
ना है घर की चाहत
ना है लोगों को हमारी कदर
दूर-दूरा कर लोग भगा देते हैं
वफादारी करना बन चुकी हमारी आदत
है बस खाने की चाहत।
ना है कपड़ों की चाहत
ना है गहनों की चाहत
ना है चोरी की आदत
ना है उतना खेलने की आदत
ना है रात को सोने की आदत
है बस खाने की चाहत।
ना है कोई सपना
ना है कोई ख्वाहिश
चोट पर ना है कोई मरहम की आदत
ना है आंसू बहाने की आदत
ना है उड़ने की कोई ख्वाहिश
है बस खाने की चाहत।
Written by #LekhikaNehaJaiswal
bahut badhiya kavita.....
ReplyDelete