"यादें पीछा करती हैं"(लेख)

 यादें पीछा करती हैं 
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"याद" शब्द मस्तिष्क के भीतर उपस्थित स्मृति कोष में विद्यमान होता है। "स्मृति" के साथ "विस्मृति" भी जुडा होता है जिसके कोष में बहुत सी मनुष्य के जीवन में हो चुकी घटनाओं व दुर्घटनाओं के कथानक दफन होते हैं, जो तर्क वितर्क के अवसर पर उद्दीपन स्वरूप स्मृति कोष में स्वतः आकर इतिहास को जागृत करते है ।जो घटनाएँ समाज पर दूरगामी प्रभाव डालती हैं वे "यादों"के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाते हैं । ऐसी यादें समाज को चुभन या प्रेरणा के रूप में विद्यमान रहती हैं । हमारा मानना है कि हर व्यक्ति के विगत जीवन की घटनाओं का अपना एक इतिहास होता है जो समय समय पर उकेरे जाने पर प्रस्फुटित होता है।जिन जिन परिस्थितियों से वह अपने जीवन को गुजारता है वो पल पल की परिस्थितियाँ ,यादों के रूप में पीछा करती हैं और अपने साये उसको पीछे खींच ले जाती हैं।बचपन में आनन्द के मीठे फल, यौवन में अस्तित्व के लिए संघर्ष, अधिकार और कर्तव्य के दायरे में रहकर समाज में उचित अनुचित क्रिया प्रतिक्रिया का स्वरूप हमेशा यादों के रूप में विद्यमान रहता है यहीं नहीं यादों के रूप में ये अनुभव वह विरासत के रूप में आने वाली पीढियों को देना चाहता है। भावों और रसधारों से परिपूर्ण यादें उसके जीवन को इस तरह अभिसिंचित करती है जिससे व्यक्ति पीछा नहीं छुटा पाता और समय समय पर उद्वेलित होता है।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

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