"वक्त की हर शै गुलाम'(कविता)

ज्यों हवाओं का रुख ,बदलता रहे पल पल,

कभी उमस भरी होती वो कभी लगे शीतल,

धूल भरी होती कभी वो ,कभी बहती निर्मल,

लू के थपेडों से यूँ कभी बदन को करे घायल, 

मिज़ाज के साथ जो चलते, होते वही सफल,

दुखी होते वो कभी,खुद जिद में जाते निकल।

।1।


ये वक्त भी बहुरुपिया सा बदले अपनी शकल,

इंसाँ संग देता जो ये,कांटे भी बनते सरस फल,

घूरे के दिन बदलते,ज्ञानी भी होते दिखे पागल,

रंक भी हो जाते राजा बंदरों से सिंह हुए घायल,

बसंत से रूठी खुशबू ,बरखा से हार गया बादल,

समझदारी उसी में है,समय के साथ बहता चल।

।2।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

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