"सुझाव"(कविता)

सब जगह आना जाना नहीं चाहिए

यूं ही मिलना मिलाना नहीं चाहिए

इक तज़ुर्बा मिला है बुज़ुर्गों से ही

रोज़ महफ़िल सज़ाना नहीं चाहिए


राज़ सबसे बताना नहीं चाहिए

रोज भिड़ना भिड़नाा नहीं चाहिए

ख़ुद को ख़ुद में समझना ज़रूरी मग़र 

सब पे उंगली उठाना नहीं चाहिए


इंसान ही नहीं इंसानियत होनी चाहिए

मिलो न मिलो मिलन की आस होनी चाहिए

चार दिन की ज़िंदगी  में मुंह फुलाए घूमते हैं

दिल में मथुरा काशी और प्रयाग होना चाहिए


ख़ैरियत के साथ-साथ कैफ़ियत होनी चाहिए

हैसियत के साथ-साथ मुरव्वत होनी चाहिए

दोस्ती वही है जो आफ़त  में खड़ी हो

कुरब़त के साथ-साथ अज़मत होनी चाहिए


फूल के साथ-साथ कांटे भी रखना चाहिए

जमीं को देखकर फ़लक पे उड़ना चाहिए

सुख-दुख का आना जाना कब रुका है या रुकेगा

आंसू बहे तो बहे धैर्य रख मुस्कुराना चाहिए


कैफ़ियत-हाल-चाल ,अज़मत-भलाई ,कुरब़त-करीबी फ़लक-आकाश 

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