"प्यार का फूल खिला था मुझमें"(कविता)
छिड गयी ,जब से वो बात बन्धन की,
कुछ सलोने सपन आने लगे थे मुझमें।
उपवन में छू लेता जब भी कलियों को,
अजीब सी गुदगुदाहट लगती है मुझमें।
गुमसुॅ हो जाता उन चर्चा के खयाल पर,
भ्रमर ,भी वो गीत सुनाने लगे थे मुझमें।
।1।
पहली मुलाकात मेरी जब से हुई तुमसे,
तभी से प्यार का फूल खिला था मुझमें।
चितवन को समझा, झुके इन नयनों ने,
दिल भी बगावत, करने लगा था मुझमें।
गेसुयें लहराई गालों पर,पहली नजर में
डसा ऐसा,बस नशा छा गया था मुझमें।
।2।
Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला
किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0
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