"पहले मुझे लगता था……पर अब लगता है"(लेख)

 पहले मुझे लगता था……पर अब लगता है
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            समय परिवर्तनशील है,इसके साथ सम्यक् जीवन यात्रा में अनेकों प्रकार के रास्तों से दो चार होना पडता है। सफर करने के दौरान  मोड,तिराहे और चौराहे भी मिलते है जिनको पार कर गंतव्य तक पहुंचना होता है।एक ओर दुर्दिन के गहराते अंधेरी रात की साया में सहयात्री न होने पर कभी कभी अज्ञात भय ,कभी अपने पैरों को पीछे खींचने के लिए मजबूर करता है तो दूसरी ओर अभीष्ट और आनन्दमयी लक्ष्य मिलने की लालसा लिए हमारी आत्मा,धैर्य बधाॅती हुए भय को निर्भयता से चीरते चले जाते हैं।यह अडिगता कोई साधारण वस्तु नहीं,बहुत विरले लोगों में ही पाई जाती है।अदम्य साहसी व्यक्ति ही दुर्दांत झंझावातों को पार कर अक्षुण्ण अन्वेषक "कर्मवीर" की उपाधि प्राप्त करते हैं ।शाश्वत और सनातन सिद्धान्त ही इनसे संघर्ष करने की प्रेरणा के साथ साथ जीवटता का आनन्द देता है ।यह उत्तेजक परिदृश्य ही अंत में "पहले मुझे लगता था……अब मुझे लगता है" के बीच का अंतर महसूस कराता है और एक ओर प्रारम्भ की अल्प या बिना अनुभव का जीवन और दूसरी ओर अन्तिम छोर पर बृहद और पर्याप्त अनुभव के जीवन के बीच आये विविधताओं में एक पुल का काम करता है।हम समझते हैं कि भावी पीढियों को अपने अभिभावकों से  विरासत प्राप्त कर "पहले मुझे लगता था……अब मुझे लगता है" के अन्तर को अधिक और स्पष्टता से उकेरना चाहिये।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

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