"कांटे भी,बाग की शान"(लेख)

 कांटे भी,बाग की शान
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"कांटे को काँटा निकालता है,फूल नहीं"। यह कहावत स्वतः ही कांटों के महत्व का बखान करता है।यह सही है जिस फूलों या फलों वाले पेड में कांटे होते हैं वे कम जल सिंचन कर जीवित रहते हैं और उनमें फूल व फल अधिक सुरक्षित होते हैं। चिडियाँ घोसले व मधुमक्खियाँ शहद के छत्ते अधिक लगाते हैं,ऐसे में इन पेडों के महत्व बढ जाते हैं।बाग में घुसते ही इन पेडों पर लगे रंग बिरंगे फूल अपनी अलग शान- बान बनाते हैं ।इन सबके पीछे तर्क यह है कि काँटे अधिक सुरक्षा प्रदान करते हैं । बाग भी वही सुरक्षित अधिक होते है जिनकी बाउंड्री कांटे वाली बेलों या पौधों से युक्त होती है। हमारे जीवन दर्शन में भी यह बात परिलक्षित है कि सुख शब्द ,कष्ट या दुःख के कारण ही सार्थक है।हमारे समझ से विषम परिस्थितियाँ ,व्यक्ति के मस्तिष्क और शरीर को अधिक सक्रियता और सहनशीलता प्रदान करती है जिससे वह अपने जीवन में अधिक परिपक्व और धैर्यवान होता है जो दुख व विषम परिस्थितियों को झेलता है।एक तरफ सुख जीवन को परमानंद से भरते हैं तो दूसरी ओर दुख जीवन की कडुवी सच्चाई और हकीकत के धरातल का अहसास कराते है।हम जब एक ओर सुखी जीवन के हरी भरी वादियों में विचरण करते है तो नियति दूसरी ओर उनमें छिपी संभावित दुर्घटनाओं की कालिमा या छाया के प्रति सचेत करती है ठीक उसी प्रकार जैसे फूल आनन्द देने के लिए अपनी ओर आकर्षित करते है पर कांटे सचेतक का काम करते है, गुलाब का फूल तोडते समय काँटे शरीर में चुभकर हमें असावधानी का अहसास कराते हैं।इसी प्रकार मृत्यु मूकरूप से हमें जीवन में संयम और भौतिकता से निर्लिप्त होना सिखाता है।हमें उदारवादी प्रकृति व नियति के मूक संदेश को पूरे मनोयोग से सुनना चाहिये तभी जीवन के सार्थकता का अनुभव  होगा।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

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