"बुढ़वा मंगल"
जेठ मास मंगल प्रबल, किरिपा बरसत जात।
बुढ़वा मंगल अन्त में, सुख समृद्धि भर जात।।
हाथे ध्वज औ गदा बिराजत।
कांधे मूंज जनेऊ छाजत।।
हिरदय महि बसते रघुनंदन।
कृपा करौ हे मारूति- नन्दन।।
बालकाल रवि भक्षण किययू।
सृष्टि समस्त अन्धमयि भययू।।
सागर लांघत भय नहि आवा।
प्रभु मुदरी मुंह माहि सिरावा ।।
जय जय हे अंजनि के लाला।
बेगि हरौ सगरौ जंजाला।।
ध्यावत जे जन नित चित लाई।
सुख-सम्पत्ति घर म भरि जाई।।
शनि प्रकोप नहि काया माही।
हनुमत-कवच बचावा ताही।।
भूत-प्रेत निकट नहि आवत।
लाल-लगोंटा लखि लखि भागत।।
संकट समय तुमहि जे ध्यावै।
संकट कटै तुरत हल पावै।।
बिनु तुम्हरे जन राम न पावै।
हनुमत सुमिरि राम ढ़िंग जावै।।
दीन-हीन-साधन-विमुख, नहि कौनेव उपमान।
रक्षा हमरिउ कीजिये, पवनपुत्र हनुमान।।
superb....
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