"पिता"(कविता)

घर का मुखिया  होता है पिता। 

घर परिवार का होता है रचयिता।।

ये घर के बोझ को कम  करते है सारा

दुख  के समय में ढाल  बनके परिवार  को देते हैं सहारा।।

ये बाहर  से लगते  हैं  सख्त  लेकिन  अंदर  से हैं नरम। 

अपने बच्चों पे जब मुसीबत  आती है तो सबसे पहले लगाते हैं मरहम। ।

अपने घर परिवार के खातिर खुद  की  इच्छाओं  को करते है कुर्बान। 

कम है जीवन  मे इनकी जितना भी करे गुणगान। ।

मां देती है संस्कार। 

तो पिता  सिखाते हैं क्या है जीवन  का आधार। ।

ये घर-परिवार  के प्रति  रहते हैं ईमानदार। 

हर पल दुआ  करते हैं सदा हरा रहे मेरा परिवार। ।

ये जीवन  के बगिया की रक्षा करते हैं बनके माली।

ये अपने बच्चों  के जीवन  में लाते हैं  सदा खुशहाली। । 

पिता अपने बच्चों के जीवन  को करते हैं  रोशन। 

पिता की आशीर्वाद  से ही बच्चों का सफल  होता है जीवन। ।

बच्चों को ये देते हैं जीवन मे ज्ञान।

परिवार  की रखते है सदा मान।।

पिता ईमानदारी से करते हैं अपना काम 

पिता के चरणों  मे मेरा सत् सत्  प्रणाम। ।

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