"ये अर्ज हमारी"(कविता)

हे कृष्ण  मची ये कैसी त्रासदी है,

 छीनी गई यहां सासों की आजादी है।


चारों तरफ दिख रही सिर्फ बर्बादी है,

जागो हे कृष्ण यह  कैसी समाधि है।


 भक्तों पर कहर बनकर टूट रही है आपदा ,

तू कहां बेखबर अनजान बनकर खड़ा।


 यह कैसा राक्षस है यह कैसी जंग है,

  इसके प्रभाव से टूट रहा अंग प्रत्यंग है।


 अदृश्य प्रहार है सदृश्य संहार है,

 कैसे लड़े इससे यह मनुष्यता की हार है  ।


कोई ना बचेगा जब महाप्रलय होगा,  

  यह रूष्ट प्रकृति का भयानक अभिशाप है ।


वर्षों से हम कर रहे प्रकृति का अपमान है,

 उसे  छुब्ध समझ हमने किया अभिमान है ।


बलात्कारी हैं हम बलात्कार करते रहे,

 प्रकृति को अपने अय्याशियों तले रौंदते रहे ।


आज प्रकृति ने किया घोर प्रतिकार है, 

 हवा पानी ने भी लिया आज आकार  है।


 बोतलों सिलेंडरों में आज वह बिक रहे, 

मच रहा चारों तरफ इसका हाहाकार है।


 प्रकृति के प्रहार का सब बन रहे आहार हैं ,

आज प्रकृति कर रही जग का संहार है।


 अब तो आओ प्रभु गांडीव उठाओ तुम,

 प्रत्यंचा चढ़ा कर इस काल को भगाओ तुम।


 अब और दुख दर्द हमसे सहा नहीं जाता है ,

तेरे सिवा प्रभु अब कुछ नजर नहीं आता है।


 अब तो आओ प्रभु जग का उद्धार करो,

 तू ही तो  इस सृष्टि का सृजन विधाता है।

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