"व्यथा"(कविता)
रातें खामोशी में नहीं प्रियतमा ,
भूखी नारी और व्यथा अनसुनी ।
दहलाती कहानियां और जिंदा उपमा,
क्या चंदा हीं थी बुनी ?
क्यूँ आखिर कागजी है रहनुमा ,
क्या सियासी खेती भी दुगुनी ?
जिस्म़ और दिल कहाँ खुशनुमा ,
दिनों में क्या लाचारी अंदरूनी ?
चुना मजहबी तथा जातिवादी शुरमा ,
गद्दी हेतु ये रमाये धुनी ।
छलिया हवा को क्षमा ,
सिलसिला गद्दारी तो वारदातें खूनी ।
दागी इश्क कि घृणा बदनुमा ,
लालफीताशाही में क्या कोंखें सूनी ?
महामारी में मिथ्या न अजन्मा ,
कैसे कहूँ कि सूरज गुणी ?
स़़च़ ठगाना तो न थमा ,
देरी बहाना तो फरियादी अवगुणी ?
अन्यायी आग क्या है कमा,
ढोती नदियां लाशें क्या बातुनी ?
Written by विजय शंकर प्रसाद
nice.... superb.....
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