"व्यथा"(कविता)

रातें खामोशी में नहीं प्रियतमा ,

भूखी नारी और व्यथा अनसुनी ।

दहलाती कहानियां और जिंदा उपमा,

क्या चंदा हीं थी बुनी ?

क्यूँ आखिर कागजी है रहनुमा ,

क्या सियासी खेती भी दुगुनी ?

जिस्म़ और दिल कहाँ खुशनुमा ,

दिनों में क्या लाचारी अंदरूनी ?

चुना मजहबी तथा जातिवादी शुरमा ,

गद्दी हेतु ये रमाये  धुनी ।

छलिया हवा को क्षमा ,

सिलसिला गद्दारी तो वारदातें खूनी ।

दागी इश्क कि घृणा बदनुमा ,

लालफीताशाही में क्या कोंखें सूनी ?

महामारी में मिथ्या न अजन्मा ,

कैसे कहूँ कि सूरज गुणी ?

स़़च़ ठगाना तो न थमा ,

देरी बहाना तो फरियादी अवगुणी ?

अन्यायी आग क्या है कमा,

ढोती नदियां लाशें क्या बातुनी ?

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