"वो बात बने वतन में"(कविता)

पंख हो गये,उड लो उन्मुक्त गगन में,

केवल कह देने से अब न बनेगी बात।

हौसले की बात करनी होगी चिंतन में,

क्षितिज पार जाने का हो पैदा जज्बात।

घटाओं से भिडने का बल देना बदन में,

घोर अंधेरी रात मिटे,ऐसा जन्मे प्रभात। 

।1। 

जज्बे को सलाम, देना होगा तब मुझमें,

चाॅद से मिलने मैं जब पार करूँ निर्वात।

जोशीले हों,पर फडफडायें पूरे लगन में,

उस ओर,जिस तरफ उठ रहे झंझावात।

परियों के किस्से से,वो बात बने वतन में,

गुड्डा गुड्डी की शादी में हो जाये ऐसी बात। 

।2।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

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