"उम्मीदें"(कविता)
तस्वीरों को देख विहँसती
प्यार भरी इक मूरत गढ़ती
ख़ाली-ख़ाली दिन में बैठी
सन्नाटों के बीच उतरती।
खिलते फूलों - सा मन होगा
महका - सा घर आँगन होगा
नृत्य करेंगीं नित्य बहारें
फिर मौसम मनभावन होगा
प्रभु के आगे दीप जलाकर
एक यही अभिलाषा करती
ख़ाली-ख़ाली.....
बाज़ारों में रौनक़ होगी
मित्रों के सँग बैठक होगी
उम्मीदें पथ पर उतरेंगी
मुख मुस्कान सलोनी होगी
फिर से हँसती धूप खिलेगी
दुख की ये रजनी बीतेगी
ख़ाली-ख़ाली...
नैनों में सपने उतरेंगे
दिल जुड़कर फिर से चहकेंगे
मिट्टी में फूटेंगे अंकुर
फिर बादल खुलकर बरसेंगे
लहरेगी हरियाली चूनर
रूप सँवारेगी फिर धरती
ख़ाली-ख़ाली...
टूटेंगे सन्नाटे गहरे
पुलकित होंगे साँझ-सवेरे
बंधन खुल जायेंगे सारे
मन से हट जायेंगे पहरे
स्मृतियों की ज्योति जलाऊँ
दिव्य - प्रभा अंतस में रखती
ख़ाली-ख़ाली..
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