"स्त्रियां"(कविता)
द्रौपदी पे क्या - क्या बारिकियां ?
क्यूँ दी अक्षरशः झिड़कियां ,
सुधा या जहर कौन -कौन पीया ?
कितनी है अब छतरियां ,
क्या बाँटा या लिया ?
पक्षपाती है क्या खिड़कियां ,
कौन सम्भाला था चुनरियाँ ?
माँ हेतु नहीं हिचकियाँ ,
राजघराना में अपवादें हस्तियां ।
पात्रता हेतु ही अर्जियां ,
इतिश्री हेतु भी स्त्रियाँ ।
पुरूषों में क्या खामियां ,
बड़बोले हैं अलबत्ता भेदिया !
गंदगी कहाँ नहीं घटिया ,
लूटने -लूटाने में नदियां ।
गुलाब़ खिलने की बारियां ,
तभी तोड़ा आदमी कलियां ।
कहीं खामोशियाँ या गुस्ताखियाँ ,
खलनायिका क्या अनुभवी मछलियां ?
साहिलों पे न कश्तियाँ ,
जनता की क्या सिद्धियां ?
गर्दिशों में वही चिड़ियाँ ,
जो जहाजों पे शर्तिया ।
धरती पे हरी-पीली पत्तियाँ ,
हवा से बुझा दीया ।
समंदर तक क्या त्योरियां ,
बहुरूपिया तस्वीरें कितनी जोड़ियां ?
महफिलों में क्या चित्रकारियां ,
परछाइयों से क्या यारियां ?
वादा और इरादा चोरियाँ ,
कहाँ है प्रियतमा बोरियां ?
अपेक्षा और उपेक्षा इश्किया ,
विवादों में क्यों बस्तियां ?
आग फैलना तो सुर्खियां ,
घृणा भी आखिर भर्तियां ।
मैदानों में कहाँ घोड़ियां ,
न्यायी योद्धा क्या भेड़िया ?
मिमियाती रही थीं बकरियाँ ,
अकारण मारना नहीं कुर्बानियां ।
nice...
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