"संदेशवाहक कृष्ण"(कविता)
दूत बनकर आए कृष्णा, दुर्योधन को समझाने को
आधा राज्य नहीं तो, पाँच गाँव ही दे दो, पांडवो का मन रखने को||
चूँ तक भी न वो करेंगे, तैयार हूँ मैं ये वचन देने को
आखरी मार्ग अब यही बचा है, युद्ध की स्थिति टालने को||
रक्त बहेगा, शव बिछेंगे, बचा लो कुरुक्षेत्र को, श्मशान भूमि से बनने को
काल कल्पित होगा सब कुछ, न बचेगा कोई शव उठाने को||
दोनों पक्षों में अपने लोग है, चाहे, पूछो-कह दो सभी रिश्तेदारो को
धर्म-अधर्म का युद्ध ये होगा, महाकाल भी खड़ा सब ग्रास करने को||
मानने को तैयार न दुर्योधन, न बात ही कृष्ण की सुनने को
बंदी बनाने का आदेश है देता, सेना के नौजवानों को||
तैयार हो गए तब कृष्णा, अहं को धूल में मिलाने को
विराट स्वरूप में बदले पल में, कौरवों की शान मिटाने को||
धरती, अंबर, पाताल देख लो, तुम्हें महाकाल भी बढ़ा पचाने को
ब्रह्मांड समाया देख लो मुझमें, देख लो ब्रह्मा, यक्ष तुम शिव-शंकर को||
देव-दानव-जीव मुझमें समाहित, धर्म की, अवतार धरा मैं रक्षा करने को
आदि-अंत न मेरा देखों, ललकार रहा तू मुझ ईश्वर को||
सेना में तेरी शक्ति न इतनी, जो, बांध सके मुझ परमेश्वर को
गिर पड़े सब कौरव चरण में, शांत करने प्रभु कृष्णा को||
क्रोध को त्यागों, मर्यादा रखों, दुर्योधन समझाने दो
तुम महामानव हो सभी जानते, मनाते हैं सब कृष्णा को||
superb... nice...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है
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