"रात सोती क्यों नहीं"(कविता)

धडकनों ने अपने प्यारे दिल से कहा,

हमारा जीवन यूँ सदा कम्पनों से रहा,

रक्त बूदों के चलने से काँपे तेरा वदन,

बस इसी से रमाया ऐसे ही अपना मन,

तुम उनींदे न रहो सो हम भी सोते नहीं,

तभी राहे इश्क क्यों आसान होते नहीं। 

।1।

जन्मी जहाँ,दौड रहीं छोडके वो जगह,

सोती नहीं,पाकर वे धानी मैदानी जगह,

सरिता बन के उमडती सदा सागर ओर,

शाश्वत हो ये जीवन,रहे आनंद चहुँ ओर,

इश्क नादान है,इसकी राह आसान नहीं,

चाॅद न होने पर,क्यों ये लहरें सोती  नहीं।

।2।

सारा जग सोता है,चल रहे साँसों के संग,

पर नियति ने जोडा रात को तारों के संग,

टिमटिमायें ये सदा, औ जलें धरा के दिये,

रहें परमानन्द में ,जो हमें भी संग में लिए,

मृत्यु है अटल,तो जीवन शाश्वत क्यो नहीं,

हम भी फिक्र में, यह रात सोती क्यों नही ।

।3।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

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